सोमवार, 18 मई 2020

KUFFU, 'I am SO SWEET': कब्बू का फिर पेट फूला

KUFFU, 'I am SO SWEET': कब्बू का फिर पेट फूला: कब्बू  जैसे ही  अपने बच्चों के पास आयी , दोनों बच्चों ने खुश होकर उसका स्वागत किया लेकिन ये क्या कब्बू   उन्हें प्यार करने के बजाय  ...

कब्बू का फिर पेट फूला



कब्बू  जैसे ही  अपने बच्चों के पास आयी , दोनों बच्चों ने खुश होकर उसका स्वागत किया लेकिन ये क्या कब्बू   उन्हें प्यार करने के बजाय  मारने लगी।  वे बेचारे सहमे से दूर बैठ गए।  हमे ये देखकर बहुत ख़राब लगा  कि  कल ही १२ मई २०२० को  मेरे नन्हे -मुन्ने अकुई -मकुई  तीन महीने के पूरे  हुए है और  ये देवी जी  पेट फुला कर पल भर में ही अपने बच्चो  के लिए गैर हो गयी।   वैसे इस  बात का डर  हमें पिछले कुछ दिनों से सता रहा था  की वो फिर से पेट फुला कर न घूमने लगे और हुआ भी वही।    वैसे भी कुछ दिनों से हम उसके व्यवहार में बदलाव अनुभव कर रहे थे वो जो अपने बच्चों को दो घंटे के लिए भी अकेले नहीं छोड़ती थी अब वो पूरी -पूरी रात घर नहीं आती और अगर आती है तो  खाना खा  कर सिर्फ सोती रहती है। खाने के मामले में भी हमने गौर किया कि जहाँ पहले कब्बी अपने बच्चों के खाने के बाद खाती थी अब वो अपने बच्चों को हटा कर  पहले खुद खाती है।    पहले तो हमे उसके व्यवहार से गुस्सा तो बहुत आया फिर सोचा की  कब्बू के  पेट में जो जीव पनप  रहे है , उन्हें भी भोजन की आवश्यकता है एवं उन्हें अकुई - मकुई की उछल कूद से  नुकसान पहुंच सकता है साथ ही कब्बू को भी चोट लगेगी ।    इस बार  फिर से बच्चों के आने की आहट हमें हर्षित नहीं कर रही थी अपितु चिंता ग्रस्त कर रही थी।  अभी अकुई - मकुई पॉटी  करने की जगह भी ठीक से पहचान नहीं पा रहे थे य यू कहे की बचपना के चलते भूल जा रहे थे जिसका परिणाम कभी -कभी बिस्तर पर कर देते।  इधर वे बड़े हो रहे थे तो अब कमरे में बंध कर रहना भी नहीं चाहते थे लाबी में जब घूमते तो जहाँ -तहाँ  सूसू- पॉटी कर देते।  उनकी इस करतूत पर उन्हें हमसे डांट तो पड़ती ही लेकिन साफ -सफाई भी हमी को ही करनी पड़ती। नौकर से करवाते नहीं क्योंकि वे लोग तुरंत सलाह देने लगते कि इन्हे बाहर छोड़ दीजिये ,छत पर छोड़ दीजिये आदि जो हमें मंजूर नहीं।  वैसे भी उन दोनों की मासूम आँखों को देखकर उन्हें घर से निकालने का मन ही नहीं करता।  अतः अब हमने निर्णय लिया की उन्हें छत पर 

सुबह -शाम ले जायेगे ताकि वे  छत पर जाकर अपनी दैनिक क्रिया से निवृत हो सके और बाहर की दुनियां से परिचित भी हो सके।  जब पहले दिन उन्हें ले कर गए तो देखा की कब्बू महारानी भी अपने बच्चों के पीछे -पीछे आ गयी।  अब वो बैठकर अपने बच्चों पर नजर रखे हुए थी।  जहाँ भी उसे डर होता की उसके बच्चें गिर सकते है वो तुरंत उनके पास आ जाती और उनके मुंह से मुंह लगा कर प्यार करती। उसके ममत्व को देखकर हम अभिभूत थे  और कुत्ते और बिल्ली के प्यार के अंतर को भी समझ रहे थे।  कहाँ भोली  के बच्चे उसके सामने से ही दूसरे लोग लेकर चले गए और उसे कोई फर्क नहीं पड़ा और यहाँ कब्बू अपने बच्चों के प्रति कितनी समर्पित है। 





शुक्रवार, 8 मई 2020

KUFFU, 'I am SO SWEET': चूहे -कबूतरों का शिकार

KUFFU, 'I am SO SWEET': चूहे -कबूतरों का शिकार: मेरे बेजुबान  पारिवारिक सदस्य और  लॉक डाउन   दृष्टा लैब्रा एव कोलू कैट  दो बड़े -बड़े लेब्रा ( भोली -दृष्टा) और पालतू व् जंगली ...

चूहे -कबूतरों का शिकार


मेरे बेजुबान  पारिवारिक सदस्य और  लॉक डाउन  


दृष्टा लैब्रा एव कोलू कैट 

दो बड़े -बड़े लेब्रा ( भोली -दृष्टा) और पालतू व् जंगली बिल्लियों को मिला कर दस बिल्ली , जिनके लिए बराबर तीन किलो चिकिन प्रत्येक दिन आता था किन्तु  जबसे लॉक डाउन हुआ है तब से हर व्यक्ति सहमा सहमा सा रह रहा है हर पल उसे अपने ऊपर मौत की तलवार लटकती महसूस होती है।  बाजार जाना है तो सोच समझ कर पूरी सावधानी के साथ जाना , मास्क -ग्लव्स -सेनिटाइज, तीनों  का नियम से पालन करना और न . बाहर का खाना  खाना   और न ही मगाना है।  फिर भी इन मांसाहारी जीवों के लिए नियम से चिकिन आ रहा था चूँकि हम ही उन लोगो को देते थे अतः कोरोना मरीजों और मृतकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए    घर में फरमान सुना दिया गया की अब चिकिन नहीं आएगा।  पैडीग्री मँगाओ और खिलाओं।  पाउडर वाला दूध , कुत्तो और बिल्लियों के अलग -अलग किस्म के फ़ूड एक महीने के लिए मंगा  कर रख लिया।  चिकिन हमेशा हम उन्हें शाम को देते थे ;;इसलिए  जैसे ही शाम होती सारे मूक जानवर हमे घेरना आरम्भ कर देते  ये उनका रोज का रूटीन है।  अब जैसे ही शाम हुयी  हमने उन्हें पैडिग्री दिया , पेडिग्री देखते ही उनकी शक्ल भी देखने लायक थी।  पैडिग्री  किसी ने नहीं खाया अब क्या कुत्ते क्या बिल्ली मेरे पीछे - पीछे अपनी - अपनी आवाज निकाल कर अपना क्षोभ प्रकट करते या चिकिन की चाह में रास्ता रोकते जैसे पूछना चाहते की तुम हमे हमारा मनपसंद खाना क्यों नहीं दे रही हो। उनकी ये स्थिति देख कर  हमारे बेटे दो दिन बहुबाजार ( कोलकाता के एक बाजार का नाम) से मुरगा कटवा कर लाये लेकिन फिर वही कोविड   19 के भय से उसे भी बंद करवा दिया गया बेचारी  बिल्लियां बड़ी ही दुःखी आवाज  निकालती लेकिन मेरे हाथ में कुछ नहीं था।  उनको समझाते की तुम्हारे लिए हम रोज मुर्गा नहीं कटवा सकते। उनको बहलाने के लिए  कभी दूध देते कभी घर में बनी मिठाई . लेकिन अब उनको संतुष्टि नहीं। जहाँ पहले वे चिकिन खा कर घोड़ा -गधा बेचकर सोते थे अब वो सारे समय हमे परेशान करते।  दो -तीन दिनों में उन्होंने पैडिग्री खाना आरम्भ कर दिया। लेकिन बात संतुष्टि पर ही टिकी रह गयी न उन्हें अब पहले वाली नींद  आती और न हीं संतोष। इधर दो -तीन दिनों से कभी बिल्ड़िंग के किसी तल्ले पर या छत पर कबूतरों और चूहों का शिकार होने लगा।   कबूतरों को मरा  देखकर हमें बहुत दुःख होता लेकिन साथ ही ये भी लगता की जिस आराम की जिंदगी ये लोग जी रहे थे जिसके चलते बिल्डिंग में मोटे -मोटे चूहें दिखाई देते और ये बिल्लियां कभी शिकार नहीं करती अब वे अपने मौलिक रूप में वापस आ गयी थी अब छिपकली , तिलचिट्टा, चूहे ,कबूतर जो उनकी पहुँच में आ जाते वे उनके लिए लाजवाब भोजन में बदल जाते।  उनकी स्थिति देख कर हमने अनुभव किया की हम गृहणियां भी किचिन से जी चुरा कर बाजार से पिज्जा, बरगर . मोमो , रोल और न जाने कितने प्रकार की खाद्य वस्तुएं मंगाते रहते थे।  परन्तु लॉक डाउन ने हम लोगो को भी भूले  -बिसरे  विभिन्न प्रकार के पकवानों को  यू ट्यूब में  देख -देख कर बनाने के लिए मजबूर कर दिया।  इस लिए लॉक डाउन की अगर विवेचना की जाये तो हम पाएंगे की    उसका  एक ये भी पहलु  है जो काफी अच्छा रहा क्योंकि बाजार के खाने की तुलना में घर का बना खाना ज्यादा स्वास्थ्य वर्धक होता है क्योंकि  उसमे प्यार नामक बेशकीमती मसाला डाला जाता है   जो  सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार के लिए होता है इसके आलावा उसे हम पैसा कमाने के लिए नहीं बनाते बल्कि अपने प्रियजनों की संतुष्टि युक्त मुस्कान के लिए  बनाते  है । 





सोमवार, 4 मई 2020

KUFFU, 'I am SO SWEET': KOLU n DHINKU

KUFFU, 'I am SO SWEET': KOLU n DHINKU:   जनवरी २०१२  में पैदा हुयी कोलू और ढिंकु आठ 8 वर्ष की हो गयी है, दोनों का ही स्वाभाव एकदम अलग है।  ढिंकु अपने तक सीमित रहने वाली बिल्ल...

KUFFU, 'I am SO SWEET': कब्बी का रौद्र रूप

KUFFU, 'I am SO SWEET': कब्बी का रौद्र रूप:  मेरे दो अनमोल रतन  कब्बी के दोनों  बच्चे  " अकुई - मकुई " जैसे -जैसे बड़े हो रहे थे उनकी शैतानियां बढ़ती जा रही थी।  अब वो ब...

शनिवार, 2 मई 2020

KOLU n DHINKU

 जनवरी २०१२  में पैदा हुयी कोलू और ढिंकु आठ 8 वर्ष की हो गयी है, दोनों का ही स्वाभाव एकदम अलग है।  ढिंकु अपने तक सीमित रहने वाली बिल्ली है न वो किसी से दोस्ती करती है और न ही किसी से दुश्मनी  मतलब  " न उधौ का लेना न माधव का देना " वाली कहावत चरितार्थ करती है।  रिज़र्व स्वाभाव वाली ढिंकु के सामने अगर किसी दूसरी बिल्ली का बच्चा रो भी रहा हो तो उसे बिलकुल फर्क नहीं पड़ता वो अपनी जिंदगी मेंकिसी भी प्रकार का तनाव नहीं लेना चाहती उसी जगह कोलू उतनी ही सामाजिक प्राणी है वो कुत्ते, बिल्ली सबसे दोस्ती रखती है ... .



बिल्लियां कभी भी खाने के लिए झगड़ा नहीं करती
वे इंतजार करती है भले ही खाना ख़त्म हो जाये। 
कोलू ढिंकु को दूध पीते  हुए देख रही है। 


मेरा नंबर कब आएगा पूछती हुयी कोलू










AKUI -MAKUI

 मेरे दो अनमोल रतन 

कब्बी के दोनों  बच्चे  " अकुई - मकुई " जैसे -जैसे बड़े हो रहे थे उनकी शैतानियां बढ़ती जा रही थी।  अब वो बिस्तर पर सुसु ( पेशाब ) करने लगे थे जो मेरे लिए असहनीय हो रहा था।  हमने उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए एक कोने में अख़बार बिछाया और अब उन्हें बार -बार वहां ले जाकर कहते की तुम सूसू  पॉटी यहाँ करोंगे . वो  प्यारे -प्यारे   नन्हे -मुन्ने अक्सर भूल जाते और कभी बिस्तर कभी ओढ़ने वाले चद्दर पर सूसू कर देते किन्तु पॉटी वो अपनी जगह पहचान गए थे अतः वही करते।  एक दिन उन लोगो ने मेरे तकिये पर ही सूसू कर दी। ये देखकर तो मेरा धैर्य ही जवाब दे गया।  उन्हें हमने पहले उठाया और जहाँ सूसू की थी वहां उनकी नाक लगा कर जोर से डांटा कि तुम्हे मना किया था यहां सूसू करने के लिए  फिर भी तुमने की।  कब्बी ये देख कर  बड़े ही कातर स्वर  में म्याऊ - म्याऊ  कर के  उन्हें छोड़ने के लिए बोल रही थी।  हमने उसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया और जैसे अपने कुत्तों को डंडा  लेकर सोफे या दीवार पर पटक कर डराते थे वैसे ही डंडा उठा कर बिस्तर पर जोर से पटका और बोला अगर दुबारा बिस्तर पर सू सू की तो तुम्हे बहुत मारेंगे . अब तक उस बेचारी का ममत्व अंदर तक  आहत  हो गया था।  उसके दोनों बच्चे मेरे हाथ में थे जो छूटने के लिए   पुरजोर कोशिश कर रहे थे, ये देखकर उसने मेरा गाउन अपने दांतो में पकड़ कर हमको खींचा जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया।  अब उसने आगे बढ़ कर मेरे हाथ पर अपने हल्के से दांत लगाए।  हमने उसकी तरफ देखा तो उसकी आँखों में हमे क्रोध दिखाई दे रहा था जो ये बताने की कोशिश कर रही थी की उसे कुत्ता समझने की भूल न करे।  हमने  दोनों बच्चों को उठाया और जहाँ उनके लिए सूसू की जगह थी वहां रख दिया। कब्बू का क्रोध अभी भी ठंडा नहीं हो रहा था।  वैसे वो कर कुछ नहीं रही थी लेकिन उसकी आँखे शांति का संदेश नहीं दे रही  थी ।  हमे लगा की आज रात  इसे कमरे के अंदर न रखें क्योंकि ये गुस्से में है।  हमने उसके दोनों बच्चों को उठाया और कमरे के बाहर कर दिया  ये देखकर कब्बू  घबड़ा गयी और अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए  कमरे के बाहर उनके पास  चली गयी लेकिन अब तीनो माँ - बच्चे सहमे हुए थे।  उन नन्हे -मुन्नो का कमरे के बाहर आने का पहला अनुभव था इस लिए वे घबराहट में इधर -उधर देख रहे थे।  उनकी ये हालत देख कर हमे बड़ी दया आने लगी फिर सोचा की अब ये दो महीने के हो गए है इन्हे बाहर की दुनियां से परिचय करवाना ही पड़ेगा क्योंकि अगर कभी हमे बाहर जाना पड़ा तो ये अपना बचाव ही नहीं कर पाएंगे और असमय ही मर जायेगे।  रात में हम बीच में उठकर देखते की वे तीनो क्या कर रहे है।  हमने देखा कि  वे तीनो   अपनी  माँ के पास चिपक कर बैठे   हुए थे ।  हमने  उन्हें प्यार से सहलाया इस पर उनलोगो ने हमे बड़े ही भय और अविश्वास के साथ देखा जैसे कह रहे हो कि  उन्हें हमसे ये उम्मीद नहीं थी।  प्रातः ४ बजे हम उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गए क्योंकि उनके बिना हम  स्वयं भी  सो नहीं पा रहे थे ऊपर से उन्हें बाहर निकालने की ग्लानि बोध तले भी मेरी अंतर आत्मा  हमे धिक्कार रही  थी।  रेशम जैसे नरम -नरम बच्चे चुपचाप मेरी गोद में आ गए और जैसे ही उन्हें हमने बिस्तर पर रखा उनकी आँखों में चमक आ गयी।  क्योंकि वे कमरे में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे और करते भी कैसे न बाहर में उन्हें हट्टे - कट्टे कुत्तों का सामना करना पड़ रहा था जिन्हे देखते ही उन मसूमों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी।   हमने कब्बू को बुलाया लेकिन कब्बू का क्रोध अभी भी शांत नहीं हुआ था।  हमने उसे गोद में उठाया और लेकर कमरे में आ गए लेकिन वो देवी जी वहां दो पल भी नहीं रुकी और वापस बाहर लॉबी में आ गयी।   उसका नाटक देख हमने अपना कमरा लॉक किया और दोनों अकुई - मकुई के साथ सो गए।  सवेरे लगभग ६  (6 ) बजे कब्बू की म्याऊ -म्याऊ सुनाई दी , हमने उठकर जैसे ही दरवाजा खोला वो दौड़कर अपने बच्चों के पास आकर उन्हें गुर -गुर की आवाज के साथ चाटने लगी  ( बिल्लियां सब समय म्याऊ म्याऊ नहीं करती बल्कि वे विभिन्न प्रकार की आवाज प्रत्येक परिस्थिति या स्थिति के अनुसार निकालती है जैसे कि बच्चे को प्यार करने के समय अलग आवाज होगी बच्चे अगर तकलीफ में है तो जो उनकी देखभाल करता है उससे अनुनय की अलग आवाज होगी।  वो इशारों में या अपनी आँखों से अपनी ख़ुशी या  तकलीफ समझाती है ) कब्बू को अपने बच्चों को प्यार करते देख हमे  अच्छा तो लग ही रहा था साथ ही ये भी सोच रहे थे कि  कितने लोग ऐसे है जो आज भी पुरातनपंथी सोच के साथ जी रहे है की बिल्ली परिवार के लिए अशुभ होती है या इनके पास भावनाएं नहीं होती।  ये स्वयं अपने बच्चों को छोड़ देती है या मार देती है।  ये समस्त बातें तभी उपजती है जब आप इन मूक जीवों के साथ समय नहीं बिताते है उन्हें समझने की कोशिश नहीं करते। अपने बच्चों को दूध पिला कर कब्बी मेरे सर के पास आकर बैठ गयी जैसे कि  वो अपनी कृतज्ञता जता रही हूँ। 
अकुई -मकुई ने मेरी डांट खा कर ये तो समझ लिया की बिस्तर पर  सूसू   नहीं करना चाहिए।  अब उन्होंने नई तरकीब निकाली वे आते और मेरी गोद में बैठ जाते या अगर हम सो रहे है तो मेरी पीठ से चिपक कर बैठ जाते हम समझते की ये प्यार कर रहे है लेकिन वो बदमाश धीरे से सू सू कर के भाग जाते। जब एक दो बार इस तरह से इन्होने किया  तो हमने उन पर नजर रखनी आरम्भ कर दी , अब जैसे ही हम कहते  बिस्तर पर सूसू - पॉटी नहीं वे दोनों बिस्तर से कूद कर भागते।   जब हम कमरे की सफाई करते  तब   सोचते कि अब वे बड़े हो गए है, उन्हें हमे छत पर छोड़ देना चाहिए लेकिन  उनकी मासूम आँखे देखकर हिम्मत ही नहीं पड़ती उन्हें भगाने की।  जब भी उन्हें हम गोद में उठाते तब लगता की दुनियां का सबसे बड़ा सुख यही है. इस सुख के सामने समस्त कष्ट  सहन किये जा सकते है । 
 
ऐसे भी सोया जा सकता है - अकुई  मकुई 

अकुई 

माँ बनने का सुख 



गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

KUFFU, 'I am SO SWEET': इनके बिना जिंदगी नहीं

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KUFFU, 'I am SO SWEET': Bholi

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KUFFU, 'I am SO SWEET': कब्बू के किश्तों में बच्चें

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KUFFU, 'I am SO SWEET': अगला पल, और नन्ही सी जान

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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

कब्बू के किश्तों में बच्चें

KUFFU, 'I am SO SWEET':   कब्बू के किश्तों में बच्चें   कब्बू  सीधी सादी, सबसे डर के रहने वाली नन्ही सी   कब्बू अचानक पेट फूला कर घूमने लगी तब हमें लगा कि ये तो बड़ी...

रविवार, 26 अप्रैल 2020

एक जिम्मेदार माँ कब्बू





ऐसी की हवा नन्हे बच्चों को बीमार कर देगी
 इस अंदाज में कब्बू की मुँख भंगिमा 

मां बनते ही कब्बू के अंदर हमने जबरदस्त बदलाव देखा। अब वो पहले वाली निरीह, मासूम दूसरी बिल्लियों से डरकर भागने वाली, मेरी गोद में दुबक कर बैठने वाली  कब्बू नहीं थी वरन् अब वो एक जिम्मेदार मां थी। अब वो अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए भोली - दृष्टा जैसे बड़े कुत्तों से भी भिड़ जाती थी। 
मेरे घर का अतिथि कक्ष, अतिथियों के लिए कम कुत्तों - बिल्लियों के जच्चा - बच्चा केंद्र में बदल चुका था और उस कक्ष की एकमात्र सेविका हम बन चुके थे। भोली ने भी जब बच्चे दिए थे तब  हमको दो महीने तक उसकी सेवा - सुश्रसा करनी पड़ी थी। वो देवी जीं हमको देखकर समझ चुकी थी कि हम उसके बच्चों की आया है अतः अगर उसका कोई बच्चा इधर से उधर हो जाता तो वो हमको आवाज लगाती, अगर कोई बच्चा दूध नहीं पी पाता तो देवी जी हमी से अनुनय करती कि हम उसके बच्चों को दूध पिलाएं। अगर भोली का दूध नहीं हो रहा है तो उनको बोतल से दूध पिलाना पड़ता थोड़ा बड़े होने पर सेरेलक खिलाना होता और वो देवी जी अपने चारों पैर फैलाकर सोती रहती।  इधर कब्बू ने भी जबसे बच्चे दिए है वो यही चाहती है कि हम उसके बच्चों को सुरक्षा तो पूरी दे लेकिन गोद में न ले। बच्चे की जरा सी आवाज से वो व्यथित हो जाती है। और बड़े ही कातर भाव से विनय करती  है कि हम उसके बच्चों को तंग न करे। बच्चों का बिस्तर गीला हो जाता तो हमे अपनी आवाज में बताती की हम उसका बिस्तर बदले।  बच्चे अगर सो रहे है और दो घंटे से दूध नहीं पिया तो कब्बी उन्हें एक अलग ही आवाज में उठाती अगर वे नहीं जागते तो उन्हें चाट -चाट कर उठाती और दूध पिलाती। बाहर वो तभी जाती जब उसे सूसू -पॉटी करना होता।  यहीं नहीं जबसे उन्होंने चलना आरंभ किया है तब से वो मेरे लिए सरदर्द है । बिस्तर से गिरे नहीं, किसी अलमारी - टेबल के कोने में न फस जाए । अतः उनकी सुरक्षा के लिए तकियों को लगाकर चारों तरफ  दीवार उठा दी। एक दिन बच्चे अपनी बाउंड्री वाल के अंदर उछल - कूद मचा रहे थे, हमनें एक बच्चे को उठाया और बाउंड्री वाल के बाहर  रख दिया।  कब्बू उसको दूध पिलाने लगी।  सहसा हम किसी काम से कमरे के बाहर निकल गए लौट कर जब आये तो देखते है कि  कब्बू बाउंडरी वाल के अंदर अपने बच्चे के साथ बैठी हुयी है। ये देखकर हम समझ गए कि  कब्बू रानी  बच्चों की  सुरक्षा के प्रति बहुत गंभीर है।  इधर जैसे जैसे गर्मी बढ़ती जा रही थी कब्बू बिस्तर छोड़ कर जमीन पर सोने लगी। किन्तु बच्चों को बिस्तर पर ही रखती।  एक दिन रात में बहुत उमस थी हमने ऐसी  चालू कर दिया।  बाप रे कब्बू ने   दयनीय आवाज निकाल कर अपना मुंह ऐसी की तरफ उठाया जैसे कह रही हो  इसकी हवा मेरे बच्चों को बीमार कर देगी।  हमने ऐसी थोड़ी देर बंद रखा जैसे ही दुबारा चालू किया उसने फिर रोना आरम्भ कर दिया नतीजा हमे पंखे की हवा में ही सोना पड़ा।  



रविवार, 19 अप्रैल 2020

इनके बिना जिंदगी नहीं



कब्बू  अपने बच्चे के साथ 
कहते है चलने से शुगर कम होती है ये सच भी है  क्योंकि मेरी शुगर लगभग नॉर्मल रहती है पर ताज्जुब तो तब हुआ जब लगभग ढाई किलोमीटर चल कर आने के बाद घर में बैठे और कमजोरी महसूस हुई। सोचा शुगर फॉल कर गई होगी चेक किया तो 402। आश्चर्य तो अवश्य हुआ लेकिन नजर अंदाज कर दिया। दूसरे दिन इंफेक्शन का आभास हुआ तो  हमने  में  अपने बेटे से पूछा कि गणेश   ( रेस्टोरेंट का सेकंड कुक) को क्या यही बीमारी हुई थी उसने जवाब दिया मुंह तो उसका भी फूला हुआ था। अगला प्रश्न की उसे किस डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि दूसरे एम्प्लोई ने सी एम डी हॉल के पास बैठने वाले डाक्टर को दिखाया था जो 100 रुपए फीस लेता है उसकी दवाई से उसे आराम मिला है वैसे गणेश अभी छुट्टी पर है इसलिए कितना ठीक हुआ कहना मुश्किल है। मुझे लगा जब उसे आराम मिल सकता है तो हमे क्यों नहीं हमने भी 100 रुपए फीस पर डाक्टर को दिखाया और खुश होकर घर  आ गए । दूसरे दिन चेहरा कुछ और ही हो गया।  मजबूरन फैमिली डाक्टर के पास गए वो देखते ही बोले " हर्पीज जोस्टर" पता चला कि कभी बचपन में चिकीन पौक़्स हुई होगी उसी के जर्म्स फिर से सक्रिय हो गए है। डाक्टर ने सावधानी रखने को कहा और समझाया 6 महीने तक दर्द झेलना पड़ेगा।  " हुईए सोई जो राम रच राखा "  सोच कर घर आये । दवाइयां आ चुकी थी उन्हें समझ रहे थे कि तभी पतिदेव ने प्रवेश किया और चालू हो गए " कितनी बार समझाया की बिल्लियों को बिस्तर पर मत बिठाया करो ये अपने साथ कितनी बीमारियों को लेकर आती है लेकिन तुम्हे तो इन्हे अपने साथ सुलाना है, इनके मुंह से मुंह चिपका लेती हो, हम भी तो कुत्तों को प्यार करते है लेकिन उसके बाद हाथ धोते है।" मुझे लगा कि क्या ये सहानुभूति है , हमदर्दी है, डर है, चिंता है या विपक्ष की तरह मोदी पर हमला बोलने के लिए मौके की तलाश की तर्ज पर आक्रमण। हमने भी अपना फैसला सुना दिया " बिल्लियां घर से बाहर नहीं जाएगी " और दूसरे कमरे में शिफ्ट हो गए।  लेकिन इंफेक्शन को रोकने के लिए डाक्टर के अनुसार  कुत्ते बिल्ली, बच्चा सबसे दूर भी रहना था।
  बीमारी कि जब चर्चा हुई तो सबने अपने अपने अनुसार बीमारी का नाम और ठीक होने के नुस्खे बताना आरंभ कर दिया, जिसमें एक नाम था गलफुल्ली माता। 
अब दूसरा आदेश  पारित हुआ जब तक बीमार हो तुम कुत्ते और बिल्लियों  को चिकिन नहीं दोगी। ये मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था क्योंकि दो कुत्ते और दस बिल्लियों को खाना हिसाब से देना होता है ताकि कोई भूखा न रहे ये काम हम तब भी किसी के ऊपर नहीं छोड़ते जब हमारे यहां नवरात्रि में कलश स्थापना होती है और मेरा उपवास भी रहता है। सबसे ज्यादा सोचना पड़ता है अपनी दो पालतू बिल्लियों कोलू और ढिंकु के लिए क्योंकि वे संस्कारी और अनुशासित बिल्लियां है जंगली बिल्लियों की तरह छीन झपट कर खाना उन्हें नहीं आता।  हमने अपने बेटे को समझाया कि कैसे खाना देना है लेकिन वो छत पर सभी बिल्लियों के लिए खाना डाल आया और कुत्तों को अंदर वाली छत पर दे दिया नतीजा मेरी कोलू -  धिंकु भूखी रह गई।  बीमारी हालत में ही उठकर उन लोगो को दूध दिया। मन ही मन तय कर लिया कि इनकी भूख के साथ समझौता नहीं करेंगे और उसी दिन से इन लोगो को पहले की तरह से खाना देना आरंभ कर दिया। इधर कोलू जो मेरे संग रोज सोती थी इंफेक्शन बढ़ने के डर से साथ सुलाना बंद कर दिया। वो बेचारी दरवाजे के बाहर खड़ी होकर रोती। उसकी ये दशा हमसे देखी नहीं गई,  "भाड़ में गया इंफेक्शन"  दरवाजा खोल कर उसे अंदर कर लिया। वो बेचारी सर्दी के मारे इतनी सिकुड़ गई थी कि पूरी रात मेरी रजाई के अंदर हमसे चिपक कर सोती रही। बीमार हुए हमें 14 दिन  हो गए इंफेक्शन ठीक होने में समय लग रहा है लेकिन मेरे  मूक बच्चे खुश है क्योंकि उन्हें मेरा प्यार मिल रहा है। 





मंगलवार, 3 मार्च 2020

कब्बू के किश्तों में बच्चें

पहली बार हमने  किसी बिल्ली को किश्तों में बच्चे देते देखा ... 

कब्बू 


सीधी सादी, सबसे डर के रहने वाली नन्ही सी   कब्बू अचानक पेट फूला कर घूमने लगी तब हमें लगा कि ये तो बड़ी हो गई। अब हमारे सामने समस्या उसके बच्चे सुरक्षित जगह पर करवाने की थी। क्योंकि ये तो ठहरी बिल्ली की जात,  कहां अपने लिए प्रसव स्थल बना लेगी कुछ ठीक नहीं।  इधर - उधर घूमने वाली बिल्ली उसे हम बांध कर तो रख नहीं सकते  थे फिर भी कोशिश रहती कि उस पर हम नजर रखे। लेकिन कब्बू तो समझदार बच्ची ठहरी,  अपना अच्छा - बुरा बखूबी जानती थी अतः जब उसे महसूस हुआ कि प्रसव पीड़ा से गुजरने वाली है तो सबसे पहले उसने खाना छोड़ा।  ये देखकर हमने प्रिंटर के बड़े से डब्बे में  दो चद्दर बिछा कर उसके लिए नरम बिस्तर बना कर उसे सुला दिया। कब्बू भी अपना नया घर पाकर खुश हो गई।


एलियन शक्ल का बच्चा 

 दो दिन बाद 9 फ़रवरी 2020  को उसने लगभग 9 बजे एक एलियन से दिखने वाले बच्चे को जन्म दिया। वो बच्चा मरा पैदा हुआ था। शरीर में कोई हरकत नहीं थी। कब्बू ने उसे दो - चार बार चाटा जैसे ही उसे समझ आया कि बच्चा मरा है उसने उससे दूरी बनाई और खुद को साफ करने लगी। बिल्लिया  स्वभाव से सफाई पसंद होती है और अनुशासित भी। वो जबरदस्ती  दूसरी बिल्लियों से झगड़ा नहीं करती। स्वयं को साफ करने के बाद वो मेरे पास आकर चिपक कर बैठ गई। ये देखकर हमे बड़ा आश्चर्य हुआ । हमने उठ कर सबसे पहले उस मृत बच्चे को हटाया। कब्बू ने हमें शांति से  देखा और निढ़ाल सी पड़ गई।  उसकी स्थिति देखकर हमें उस पर बहुत तरस आया। हमने उसे दूध हलका गरम कर के दिया जो उसने थोड़ा सा पिया और फिर सो गई। दूसरे दिन भी उसने कुछ नहीं खाया।  जानवर अपने शरीर की जरूरतों और उसके उपचार के बारे में भली प्रकार से जानते है अतः उन्हें कितना भी चिकीन, मटन, मिठाई, दूध दे दो वो उतना ही खाएंगे जितनी उन्हें जरूरत है। हम इंसानों की तरह वे कल के लिए नहीं सोचते शायद उन्हें ईश्वर  के ऊपर  अथाह भरोसा है। उसके  पेट को छूने से समझ आ रहा था कि अभी इसके और बच्चे है लेकिन हमें आश्चर्य हो रहा था कि अगर बच्चे है तो वो जनम क्यों नहीं ले  रहे।  तीन दिन बाद 12 फ़रवरी को सुबह से ही वो बार - बार आकर मेरी गोद में बैठ जाती और कातर स्वर में रोती। रात्रि 7बजे उसने फिर से एक बच्चे को जन्म दिया, उसके 15 मिनट बाद दूसरे को जो की मृत पैदा हुआ। फिर तीसरा और चौथा। इस तरह अत्यंत वेदना सह कर वह तीन बच्चों की मां बन गई। अब उसकी ये स्थिति थी कि अगर हम बच्चे को ले लेते तो वो तुरंत व्यथित सुर निकालती जैसे कह रही हो कि मेरे नन्हे को तंग मत करो। जैसे ही हम उसे उसके पास रखते वो उसे चाट - चाट कर अपनी सारी ममता उड़ेल देती। उसकी ये हालत देख कर हमे उस पर बड़ी दया आती और ऊपरवाले  द्वारा मां के  रूप में नन्हे जीवों को  दिए हुए  इस करिश्माई उपहार पर विस्मय होता कि  उसने क्या इंसान क्या जानवर सभी को ममत्व का अनमोल गुण दिया है। सच में मां, मां ही होती है।
प्रसव पीड़ा से व्यथित कब्बू 


माँ बनने का सुकून 

शैतान बच्चा 





मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

अगला पल, और नन्ही सी जान


अगले पल, क्या ?



कल्ली डोरमैट पर एक नन्हे से बच्चे को लेकर बैठी थी, दरवाजा खुलते ही उसने हमको देखा और बड़े ही कातर स्वर में आवाज निकाली जैसे कहना चाह रही हो कि ये उसके जिगर का टुकड़ा है। बच्चे का निश्चल शरीर देखकर पलभर को लगा कि क्या ये बच्चा जीवित है?  2 -4 मिनट इंतजार करने के बाद कल्ली ने अपने बच्चे को मुंह से पकड़ा और लेकर चली गई।
कल्ली और उसका बच्चा आयी - गई बात हो गई। सहसा 21 जनवरी को कल्ली अपने 15 दिन के बच्चे को लेकर फिर से हाजिर हो गई दोनों मां - बच्चा मुख्य द्वार के डोरमैट पर बैठे हुए थे। उस  नन्हे से बच्चे को देखकर हमें बहुत खुशी हो रही थी लेकिन हाथ लगाने से डर रहे थे कि कहीं  कल्ली अपने बच्चे को छोड़ न दे ( जैसा  कि बिल्लियों के बारे में सुनते है ) लेकिन वो नन्ही सी जान अपनी मां के पास से सरक कर दूसरी सीढ़ी पर जा टिकीं। कल्ली अपने बच्चे को ठंड के समय सीढ़ी पर पड़े देख मेरी तरफ मुड़ी और शिकायती लहजे में रोई जैसे कह रही हो मेरा बच्चा सर्दी में मर जाएगा। उस नन्ही जान को हमने जब   अपने हाथों में उठाया तो मेरी सारी ममता उमड़ पड़ी उसे दिल से लगाकर कितनी खुशी मिली ये शब्द बयान नहीं कर सकते थे। ऊपर  सीढ़ी के एक कोने में मोटा वाला डोरमैट बिछा कर   बच्चे और उसकी मां को रख दिया । अब कल्ली खुश थी और उसका बच्चा भी। भोली एवम् दृष्टा ( कुत्ते) यू तो जितनी बिल्लियां रहती है उनसे परिचित है। उठना - बैठना, खाना एक संग ही होता है किन्तु मां बनी बिल्ली ये कैसे विश्वास कर ले की ये उसके बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। अतः वो इन्हे देखते ही अपने रौद्र रूप में आ जाती और ये कुत्ता प्रजाति के रूप में लेकिन फिर भी कल्ली आश्वस्त थी की उसका बच्चा सुरक्षित है।  भोली , दृष्टा अगर उसके पास जाती तो कल्ली इंसानों की तरह से उनके झापड़ लगाती। मेरी कोशिश ये रहती की ये मेरे संग छत पर जाए और मेरे संग ही वापस आए। एक बार तो मेरी बात न मानने पर दोनों ने हमसे मार भी खाई जिसमें भोली को अगर जोर से डांट दे तो वो सहम जाती है लेकिन दृष्टा में इतना बचपना है कि मार खाने के बाद भी वो अपनी मर्जी का करती है। पूरा एक दिन निकल गया जच्चा - बच्चा दोनों ही स्वस्थ थे। रात के नौ बजे हम एक कार्यक्रम से लौटे तो देखते है कि चैनल गेट के पास कल्ली का बच्चा पड़ा है और भोली उसके पास खड़ी उसे चाट रही है। उस छोटी सी बच्ची के लिए भोली का ये प्यार ही बहुत घातक था। इस दृश्य ने मुझे अत्यन्त क्रोधित कर दिया। सबसे पहले हमने बच्चे को उठाया और फिर  भोली को बहुत कस के डांटा कि तुम बच्चा ऊपर से लेकर नीचे कैसे आई तुम्हे छूने के लिए मना किया था न। तत्पश्चात पूरे परिवार को आड़े हाथो लिया कि तुम लोग मुख्य द्वार बंद करके बैठे हो और ये भोली बाहर बिल्ली के बच्चे को ऊपर से उठा लाई। भोली के कारण सुन्न हुए बच्चे में अब तक जान आ गई और वो अपनी मासूम आवाज में रोने लगी। उस समय रात्रि के साढ़े नौ बजे थे। हमने उसे  और उसकी मां को गोद में उठाकर उनके बिस्तर तक पहुंचा दिया और थोड़ी देर रुक कर इंतजार  करने लगे कि कल्ली इसके साथ क्या व्यवहार करती है   (मन तो मेरा कर रहा था की इसे अपने कमरे में जगह दे दे फिर ख्याल आया कि वैसे ही  मुझे बिल्ली के परिवार से जोड़ा जाता है, क्योंकि एक बार मायापुर में एक बिल्ली जो गर्भ से  थी हमें देखकर इतनी कातर आवाज में रोई  कि उसका रोना देखकर हम तुरंत समझ गए कि ये  बहुत भूंखी है हमने  उसे लड्डू खरीद कर खिलाया जिसे देखकर सबने मेरा मजाक उड़ाना आरंभ कर दिया)   देखा कि कल्ली इसे चाट रही है ( बिल्ली, कुत्तों के दुलार का तरीका)  तब हम अपने सीटिंग जोन में आकर फिर से बैठ गए जहां  हमारे दोनों बेटे, बेटी,  बहू सभी मिलकर गप - शप कर रहे थे।  10 बजे हमने उठकर अपने प्यारे बच्चों को दुबारा चिकिन दिया और मुख्य द्वार बंद कर लिया ताकि भोली - दृष्टा बिल्लियों के चिकिन को ना खा जाए। रात साढ़े दस पर सुमंत ( हेल्पर) आया तो मेरे मन में ख्याल आया कि  क्यों न कल्ली और उसके बच्चे को देख कर आए कि वो क्या कर रहे है हमने ये बात सबके सामने जैसे ही बोली कि सुमंत बोल पड़ा - " बिल्ली का बच्चा तो मरा पड़ा है, कोई उसको खा गया।" ये सुनते ही हम तुरंत मुख्य द्वार खोल कर सीढ़ी की तरफ आए तो देखा कि वो मासूम दो टुकड़ों में पड़ा हुआ है, देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने धारदार हथियार  से एक झटके में उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी हो। इस मार्मिक दृश्य ने मेरे  हृदय को विचलित कर दिया एक घंटे पहले वो मेरी गोद में था और कहा ये कटा मृत शरीर। सवाल था कि इतनी निर्मम हत्या उसकी की किसने। रात  हो या दिन  कोई  भी पांच तल्ले चढ़ कर बिल्ली का बच्चा मारने नहीं आएगा। अगर बिल्ले ने मारा तो ऐसे कैसे मारा की सर और धड़ दोनों अलग हो गए। और  एक भी बिल्ली ने मुंह से आवाज नहीं निकाली जबकि उसकी मां कल्ली जहां बच्चा मरा पड़ा था उस जगह से चार सीढ़ी  ऊपर बैठी थी और दो बिल्लियां नीचे वाली सीढ़ी पर। बिल्लियों की आदत होती है कि अगर उनका कोई बच्चा बहुत कमजोर है या उसे किसी अजनबी ने छू लिया तो वो उसे छोड़ देती हैं। इधर  दोनों कुत्ते जो जरा सी आहट पर पूरी बिल्डिंग सर पर उठा लेते है, यहां एक मासूम सी जान खत्म हो गई और इन्हे तनिक भी हवा नहीं लगी  और न ही हम लोगो को जो चंद कदमों के फासले पर थे। जो भी हो ये अगला पल बड़ा ही रहस्यमई होता है क्या इंसान क्या जीव - जंतु कोई नहीं जानता कि आने वाला अगला पल उसके लिए क्या सौगात लाएगा।  मन बहुत ही दुखी था लेकिन बस में कुछ नहीं।  आज सुबह  से ही कल्ली अपने बच्चे को खोज रही है और बार - बार  मेरे आगे - पीछे घूम रही है जब हम  उसे प्यार से पुचकारते तब  वह मुंह खोल कर निरीह आवाज निकालती  जैसे पूछ रही हो कि बड़े विश्वास के साथ तुम्हारे पास आए थे और तुम उस विश्वास को रख भी न सकी।



बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

Bholi

आखिर भोली माँ बन गयी


भोली के सात  नवजात बच्चे 

भोली मां बनने वाली है ये ख्याल ही मन को पुलकित कर जा रहा था डाक्टर ने 21 सितम्बर डिलीवरी डेट बताई थी। हम सभी उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जब  4  पैर वाले नन्हे - मुन्ने बच्चे घर में घूमेंगे।  लेकिन एक समस्या थी जिसके लिए हमने पहले सोचा नहीं किन्तु जैसे - जैसे दिन पास आ रहे थे वैसे - वैसे चिंता बढ़ने लगी क्योंकि 16 सितंबर को हमें तिरुपति जाना था और वापसी 22 सितंबर तक होनी थी। घर में भोली का ख्याल रखने के लिए बेटा - बहू थे लेकिन  उनकी शादी हुए ही बहुत कम दिन हुए थे अतः उन्हें बच्चे पैदा करवाने का कोई अनुभव नहीं था। जबकि ऐसी स्थिति में ये समझना अत्यंत आवश्यक था कि कब लेबर पेन उठना आरंभ होगा और कब डाक्टर को खबर करके बुलाना होगा। यू तो डाक्टर को पूरी स्थिति से अवगत करा दिया था फिर भी मानसिक दबाव था। बाहर जाने से पहले हमने भोली से कहा कि " भोली जब तक हम वापस न आ जाए तब तक तुम बच्चे मत देना।" शायद भोली मेरी मनोस्थिति समझ चुकी थी उसने एक आज्ञाकारी बच्ची की तरह मेरे आग्रह का पूर्णतया पालन किया और जब हम 22 को वापस आ गए उसी रात से उसे लेबर पेन आना आरंभ हो गया। डाक्टर को खबर दी उसने कम्पाउन्डर भेज दिया। जिसने आते ही भोली को ड्रिप लगाई और दर्द बढ़ाने की दवाई दी। एक तो भोली की प्रथम प्रसव पीड़ा ऊपर से तीन - तीन लड़कों को देखकर उसका दर्द गायब हो जा रहा था। हमने कम्पाउन्डर को समझाया 22 सितंबर की रात 10 बजे से भोली प्रसव वेदना से परेशान है और 23 की रात हो गई यानी की 24 घंटे हो चुके है तुम लोग उसको अकेले छोड़ दो,  जानवर है तो   क्या      
उसे भी शर्म लगती है। अकेले रहेगी वो ठीक बच्चा दे देगी। लेकिन कम्पाउन्डर  महोदय सुनने को ही तैयार नहीं, उनकी दलील कि मैंने कितने जानवरों की डिलीवरी करवाई है। भोली की हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे । आज 24 सितम्बर की सुबह ही बेटे ने डाक्टर को फोन किया और भोली की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया। डाक्टर ने उसे चेंबर लाने के लिए कहा। बेचारी भोली प्रसव पीड़ा के दौरान सफारी में बैठकर 15 किलोमीटर दूर डाक्टर के चेंबर में जब तक पहुंचती है तब तक उसका पहला बच्चा  गाड़ी में ही हो गया। दूसरा डाक्टर के चेंबर में। डाक्टर साहब ने उसे इतनी बुरी स्थिति में चेंबर में बुलवाया था इसलिए नहीं कि वे उसकी तकलीफ से द्रवित थे  बल्कि  उनके मन में तो कुछ और ही चल रहा था।  उन्होंने सुझाव दिया कि इसके 7 - 8 बच्चे होंगे और वे कम से कम 12 घंटे ले लेंगे, हम इतनी देर इंतजार नहीं कर सकते अतः अच्छा होगा कि इसका आप्रेशन कर दे ताकि बच्चे भी जल्दी हो जाए और इसे तकलीफ से भी मुक्ति मिल जाएगी। बेटा असमंजस की स्थिति में था उसने हमे फोन करके पूछा कि क्या करना चाहिए। हमने आप्रेशन के लिए सख्ती से मना कर दिया। हमे डाक्टर के इस प्रस्ताव पर अत्यंत क्रोध आ रहा था कि अत्यधिक पैसे कमाने की चाह ने इंसान को कितना संवेदनहीन बना दिया है। अभी तक महिलाओं के आप्रेशन के बारे में सुनते थे अब जानवरों के भी आप्रेशन से बच्चे होंगे।  ईश्वर ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा इसी लिए उसने जनने की विधि भी इस प्रकार बनाई की जितनी तकलीफ है बच्चे के पैदा होने के समय तक  ( प्रसव  पीड़ा मादा को मां बनाती है और उसे अपने बच्चे से जोड़ कर रखती अन्यथा बिना दर्द के पैदा होने वाले बच्चे मां के लिए महत्व ही नहीं रखेगे)  उसके बाद  मां स्वयं सक्षम हो जाती है अपने बच्चे की देख - रेख करने के लिए जबकि आप्रेशन से बच्चा पैदा होने के बाद मां की इतनी बुरी स्थिति हो जाती है कि वो महीनो तक स्वस्थ नहीं हो पाती।  यहां भोली कोई इंसान नहीं वरन् एक मूक पशु है जो अपनी तकलीफ बता भी नहीं पाती। अब तक भोली अपने दो बच्चों के साथ 108 सीढ़ियां चढ़ कर घर वापस आ गई। बार - बार होने वाली प्रसव वेदना और घर से डाक्टर के चेंबर, चेंबर से घर वापसी ने उसे निढाल कर दिया। किन्तु अपने दो नन्हे - मुन्नो को देखने की खुशी उसकी आंखों की चमक से जाहिर हो रही थी। रात 8 बजे तक सात बच्चे जन्म ले चुके थे जिनमें तीन मादा और 4 नर थे। बच्चे देखकर हम लोगो ने राहत की सांस ली कि अब भोली चैन से  खाएगी और सोएगी। लेकिन नई - नई मां बनी भोली अपने बच्चों को दुलराने में व्यस्त उसे ये भी समझ नहीं आ रहा कि उन्हें  दूध भी पिलाना है। हमने एक - एक बच्चे को पकड़ कर भोली की निप्पल से लगाया तो सब चुकुर चूकुर अपनी मां का दूध पीने लगे सिवाय एक मादा बच्ची के। इधर हमने गौर किया कि भोली कुछ खा नहीं रही है। दूसरी रात्रि यानी की ठीक 24 घंटे बाद भोली ने आठवें  मरे बच्चे को जन्म दिया।  उस बच्चे को भोली  की नजर से बचाकर हटा दिया वो बेवकूफ बच्चे गिनना तो जानती नहीं थी अतः उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन ये  देखकर  मेरा मन द्रवित हो गया  कि बेचारी भोली ने कितना नरक झेला है इस ममत्व को पाने के लिए।