मेरे दो अनमोल रतन |
कब्बी के दोनों बच्चे " अकुई - मकुई " जैसे -जैसे बड़े हो रहे थे उनकी शैतानियां बढ़ती जा रही थी। अब वो बिस्तर पर सुसु ( पेशाब ) करने लगे थे जो मेरे लिए असहनीय हो रहा था। हमने उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए एक कोने में अख़बार बिछाया और अब उन्हें बार -बार वहां ले जाकर कहते की तुम सूसू पॉटी यहाँ करोंगे . वो प्यारे -प्यारे नन्हे -मुन्ने अक्सर भूल जाते और कभी बिस्तर कभी ओढ़ने वाले चद्दर पर सूसू कर देते किन्तु पॉटी वो अपनी जगह पहचान गए थे अतः वही करते। एक दिन उन लोगो ने मेरे तकिये पर ही सूसू कर दी। ये देखकर तो मेरा धैर्य ही जवाब दे गया। उन्हें हमने पहले उठाया और जहाँ सूसू की थी वहां उनकी नाक लगा कर जोर से डांटा कि तुम्हे मना किया था यहां सूसू करने के लिए फिर भी तुमने की। कब्बी ये देख कर बड़े ही कातर स्वर में म्याऊ - म्याऊ कर के उन्हें छोड़ने के लिए बोल रही थी। हमने उसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया और जैसे अपने कुत्तों को डंडा लेकर सोफे या दीवार पर पटक कर डराते थे वैसे ही डंडा उठा कर बिस्तर पर जोर से पटका और बोला अगर दुबारा बिस्तर पर सू सू की तो तुम्हे बहुत मारेंगे . अब तक उस बेचारी का ममत्व अंदर तक आहत हो गया था। उसके दोनों बच्चे मेरे हाथ में थे जो छूटने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे, ये देखकर उसने मेरा गाउन अपने दांतो में पकड़ कर हमको खींचा जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया। अब उसने आगे बढ़ कर मेरे हाथ पर अपने हल्के से दांत लगाए। हमने उसकी तरफ देखा तो उसकी आँखों में हमे क्रोध दिखाई दे रहा था जो ये बताने की कोशिश कर रही थी की उसे कुत्ता समझने की भूल न करे। हमने दोनों बच्चों को उठाया और जहाँ उनके लिए सूसू की जगह थी वहां रख दिया। कब्बू का क्रोध अभी भी ठंडा नहीं हो रहा था। वैसे वो कर कुछ नहीं रही थी लेकिन उसकी आँखे शांति का संदेश नहीं दे रही थी । हमे लगा की आज रात इसे कमरे के अंदर न रखें क्योंकि ये गुस्से में है। हमने उसके दोनों बच्चों को उठाया और कमरे के बाहर कर दिया ये देखकर कब्बू घबड़ा गयी और अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कमरे के बाहर उनके पास चली गयी लेकिन अब तीनो माँ - बच्चे सहमे हुए थे। उन नन्हे -मुन्नो का कमरे के बाहर आने का पहला अनुभव था इस लिए वे घबराहट में इधर -उधर देख रहे थे। उनकी ये हालत देख कर हमे बड़ी दया आने लगी फिर सोचा की अब ये दो महीने के हो गए है इन्हे बाहर की दुनियां से परिचय करवाना ही पड़ेगा क्योंकि अगर कभी हमे बाहर जाना पड़ा तो ये अपना बचाव ही नहीं कर पाएंगे और असमय ही मर जायेगे। रात में हम बीच में उठकर देखते की वे तीनो क्या कर रहे है। हमने देखा कि वे तीनो अपनी माँ के पास चिपक कर बैठे हुए थे । हमने उन्हें प्यार से सहलाया इस पर उनलोगो ने हमे बड़े ही भय और अविश्वास के साथ देखा जैसे कह रहे हो कि उन्हें हमसे ये उम्मीद नहीं थी। प्रातः ४ बजे हम उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गए क्योंकि उनके बिना हम स्वयं भी सो नहीं पा रहे थे ऊपर से उन्हें बाहर निकालने की ग्लानि बोध तले भी मेरी अंतर आत्मा हमे धिक्कार रही थी। रेशम जैसे नरम -नरम बच्चे चुपचाप मेरी गोद में आ गए और जैसे ही उन्हें हमने बिस्तर पर रखा उनकी आँखों में चमक आ गयी। क्योंकि वे कमरे में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे और करते भी कैसे न बाहर में उन्हें हट्टे - कट्टे कुत्तों का सामना करना पड़ रहा था जिन्हे देखते ही उन मसूमों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी थी। हमने कब्बू को बुलाया लेकिन कब्बू का क्रोध अभी भी शांत नहीं हुआ था। हमने उसे गोद में उठाया और लेकर कमरे में आ गए लेकिन वो देवी जी वहां दो पल भी नहीं रुकी और वापस बाहर लॉबी में आ गयी। उसका नाटक देख हमने अपना कमरा लॉक किया और दोनों अकुई - मकुई के साथ सो गए। सवेरे लगभग ६ (6 ) बजे कब्बू की म्याऊ -म्याऊ सुनाई दी , हमने उठकर जैसे ही दरवाजा खोला वो दौड़कर अपने बच्चों के पास आकर उन्हें गुर -गुर की आवाज के साथ चाटने लगी ( बिल्लियां सब समय म्याऊ म्याऊ नहीं करती बल्कि वे विभिन्न प्रकार की आवाज प्रत्येक परिस्थिति या स्थिति के अनुसार निकालती है जैसे कि बच्चे को प्यार करने के समय अलग आवाज होगी बच्चे अगर तकलीफ में है तो जो उनकी देखभाल करता है उससे अनुनय की अलग आवाज होगी। वो इशारों में या अपनी आँखों से अपनी ख़ुशी या तकलीफ समझाती है ) कब्बू को अपने बच्चों को प्यार करते देख हमे अच्छा तो लग ही रहा था साथ ही ये भी सोच रहे थे कि कितने लोग ऐसे है जो आज भी पुरातनपंथी सोच के साथ जी रहे है की बिल्ली परिवार के लिए अशुभ होती है या इनके पास भावनाएं नहीं होती। ये स्वयं अपने बच्चों को छोड़ देती है या मार देती है। ये समस्त बातें तभी उपजती है जब आप इन मूक जीवों के साथ समय नहीं बिताते है उन्हें समझने की कोशिश नहीं करते। अपने बच्चों को दूध पिला कर कब्बी मेरे सर के पास आकर बैठ गयी जैसे कि वो अपनी कृतज्ञता जता रही हूँ।
अकुई -मकुई ने मेरी डांट खा कर ये तो समझ लिया की बिस्तर पर सूसू नहीं करना चाहिए। अब उन्होंने नई तरकीब निकाली वे आते और मेरी गोद में बैठ जाते या अगर हम सो रहे है तो मेरी पीठ से चिपक कर बैठ जाते हम समझते की ये प्यार कर रहे है लेकिन वो बदमाश धीरे से सू सू कर के भाग जाते। जब एक दो बार इस तरह से इन्होने किया तो हमने उन पर नजर रखनी आरम्भ कर दी , अब जैसे ही हम कहते बिस्तर पर सूसू - पॉटी नहीं वे दोनों बिस्तर से कूद कर भागते। जब हम कमरे की सफाई करते तब सोचते कि अब वे बड़े हो गए है, उन्हें हमे छत पर छोड़ देना चाहिए लेकिन उनकी मासूम आँखे देखकर हिम्मत ही नहीं पड़ती उन्हें भगाने की। जब भी उन्हें हम गोद में उठाते तब लगता की दुनियां का सबसे बड़ा सुख यही है. इस सुख के सामने समस्त कष्ट सहन किये जा सकते है ।
ऐसे भी सोया जा सकता है - अकुई मकुई |
अकुई |
माँ बनने का सुख |
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