शुक्रवार, 8 मई 2020

चूहे -कबूतरों का शिकार


मेरे बेजुबान  पारिवारिक सदस्य और  लॉक डाउन  


दृष्टा लैब्रा एव कोलू कैट 

दो बड़े -बड़े लेब्रा ( भोली -दृष्टा) और पालतू व् जंगली बिल्लियों को मिला कर दस बिल्ली , जिनके लिए बराबर तीन किलो चिकिन प्रत्येक दिन आता था किन्तु  जबसे लॉक डाउन हुआ है तब से हर व्यक्ति सहमा सहमा सा रह रहा है हर पल उसे अपने ऊपर मौत की तलवार लटकती महसूस होती है।  बाजार जाना है तो सोच समझ कर पूरी सावधानी के साथ जाना , मास्क -ग्लव्स -सेनिटाइज, तीनों  का नियम से पालन करना और न . बाहर का खाना  खाना   और न ही मगाना है।  फिर भी इन मांसाहारी जीवों के लिए नियम से चिकिन आ रहा था चूँकि हम ही उन लोगो को देते थे अतः कोरोना मरीजों और मृतकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए    घर में फरमान सुना दिया गया की अब चिकिन नहीं आएगा।  पैडीग्री मँगाओ और खिलाओं।  पाउडर वाला दूध , कुत्तो और बिल्लियों के अलग -अलग किस्म के फ़ूड एक महीने के लिए मंगा  कर रख लिया।  चिकिन हमेशा हम उन्हें शाम को देते थे ;;इसलिए  जैसे ही शाम होती सारे मूक जानवर हमे घेरना आरम्भ कर देते  ये उनका रोज का रूटीन है।  अब जैसे ही शाम हुयी  हमने उन्हें पैडिग्री दिया , पेडिग्री देखते ही उनकी शक्ल भी देखने लायक थी।  पैडिग्री  किसी ने नहीं खाया अब क्या कुत्ते क्या बिल्ली मेरे पीछे - पीछे अपनी - अपनी आवाज निकाल कर अपना क्षोभ प्रकट करते या चिकिन की चाह में रास्ता रोकते जैसे पूछना चाहते की तुम हमे हमारा मनपसंद खाना क्यों नहीं दे रही हो। उनकी ये स्थिति देख कर  हमारे बेटे दो दिन बहुबाजार ( कोलकाता के एक बाजार का नाम) से मुरगा कटवा कर लाये लेकिन फिर वही कोविड   19 के भय से उसे भी बंद करवा दिया गया बेचारी  बिल्लियां बड़ी ही दुःखी आवाज  निकालती लेकिन मेरे हाथ में कुछ नहीं था।  उनको समझाते की तुम्हारे लिए हम रोज मुर्गा नहीं कटवा सकते। उनको बहलाने के लिए  कभी दूध देते कभी घर में बनी मिठाई . लेकिन अब उनको संतुष्टि नहीं। जहाँ पहले वे चिकिन खा कर घोड़ा -गधा बेचकर सोते थे अब वो सारे समय हमे परेशान करते।  दो -तीन दिनों में उन्होंने पैडिग्री खाना आरम्भ कर दिया। लेकिन बात संतुष्टि पर ही टिकी रह गयी न उन्हें अब पहले वाली नींद  आती और न हीं संतोष। इधर दो -तीन दिनों से कभी बिल्ड़िंग के किसी तल्ले पर या छत पर कबूतरों और चूहों का शिकार होने लगा।   कबूतरों को मरा  देखकर हमें बहुत दुःख होता लेकिन साथ ही ये भी लगता की जिस आराम की जिंदगी ये लोग जी रहे थे जिसके चलते बिल्डिंग में मोटे -मोटे चूहें दिखाई देते और ये बिल्लियां कभी शिकार नहीं करती अब वे अपने मौलिक रूप में वापस आ गयी थी अब छिपकली , तिलचिट्टा, चूहे ,कबूतर जो उनकी पहुँच में आ जाते वे उनके लिए लाजवाब भोजन में बदल जाते।  उनकी स्थिति देख कर हमने अनुभव किया की हम गृहणियां भी किचिन से जी चुरा कर बाजार से पिज्जा, बरगर . मोमो , रोल और न जाने कितने प्रकार की खाद्य वस्तुएं मंगाते रहते थे।  परन्तु लॉक डाउन ने हम लोगो को भी भूले  -बिसरे  विभिन्न प्रकार के पकवानों को  यू ट्यूब में  देख -देख कर बनाने के लिए मजबूर कर दिया।  इस लिए लॉक डाउन की अगर विवेचना की जाये तो हम पाएंगे की    उसका  एक ये भी पहलु  है जो काफी अच्छा रहा क्योंकि बाजार के खाने की तुलना में घर का बना खाना ज्यादा स्वास्थ्य वर्धक होता है क्योंकि  उसमे प्यार नामक बेशकीमती मसाला डाला जाता है   जो  सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार के लिए होता है इसके आलावा उसे हम पैसा कमाने के लिए नहीं बनाते बल्कि अपने प्रियजनों की संतुष्टि युक्त मुस्कान के लिए  बनाते  है । 





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