रविवार, 26 अप्रैल 2020

एक जिम्मेदार माँ कब्बू





ऐसी की हवा नन्हे बच्चों को बीमार कर देगी
 इस अंदाज में कब्बू की मुँख भंगिमा 

मां बनते ही कब्बू के अंदर हमने जबरदस्त बदलाव देखा। अब वो पहले वाली निरीह, मासूम दूसरी बिल्लियों से डरकर भागने वाली, मेरी गोद में दुबक कर बैठने वाली  कब्बू नहीं थी वरन् अब वो एक जिम्मेदार मां थी। अब वो अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए भोली - दृष्टा जैसे बड़े कुत्तों से भी भिड़ जाती थी। 
मेरे घर का अतिथि कक्ष, अतिथियों के लिए कम कुत्तों - बिल्लियों के जच्चा - बच्चा केंद्र में बदल चुका था और उस कक्ष की एकमात्र सेविका हम बन चुके थे। भोली ने भी जब बच्चे दिए थे तब  हमको दो महीने तक उसकी सेवा - सुश्रसा करनी पड़ी थी। वो देवी जीं हमको देखकर समझ चुकी थी कि हम उसके बच्चों की आया है अतः अगर उसका कोई बच्चा इधर से उधर हो जाता तो वो हमको आवाज लगाती, अगर कोई बच्चा दूध नहीं पी पाता तो देवी जी हमी से अनुनय करती कि हम उसके बच्चों को दूध पिलाएं। अगर भोली का दूध नहीं हो रहा है तो उनको बोतल से दूध पिलाना पड़ता थोड़ा बड़े होने पर सेरेलक खिलाना होता और वो देवी जी अपने चारों पैर फैलाकर सोती रहती।  इधर कब्बू ने भी जबसे बच्चे दिए है वो यही चाहती है कि हम उसके बच्चों को सुरक्षा तो पूरी दे लेकिन गोद में न ले। बच्चे की जरा सी आवाज से वो व्यथित हो जाती है। और बड़े ही कातर भाव से विनय करती  है कि हम उसके बच्चों को तंग न करे। बच्चों का बिस्तर गीला हो जाता तो हमे अपनी आवाज में बताती की हम उसका बिस्तर बदले।  बच्चे अगर सो रहे है और दो घंटे से दूध नहीं पिया तो कब्बी उन्हें एक अलग ही आवाज में उठाती अगर वे नहीं जागते तो उन्हें चाट -चाट कर उठाती और दूध पिलाती। बाहर वो तभी जाती जब उसे सूसू -पॉटी करना होता।  यहीं नहीं जबसे उन्होंने चलना आरंभ किया है तब से वो मेरे लिए सरदर्द है । बिस्तर से गिरे नहीं, किसी अलमारी - टेबल के कोने में न फस जाए । अतः उनकी सुरक्षा के लिए तकियों को लगाकर चारों तरफ  दीवार उठा दी। एक दिन बच्चे अपनी बाउंड्री वाल के अंदर उछल - कूद मचा रहे थे, हमनें एक बच्चे को उठाया और बाउंड्री वाल के बाहर  रख दिया।  कब्बू उसको दूध पिलाने लगी।  सहसा हम किसी काम से कमरे के बाहर निकल गए लौट कर जब आये तो देखते है कि  कब्बू बाउंडरी वाल के अंदर अपने बच्चे के साथ बैठी हुयी है। ये देखकर हम समझ गए कि  कब्बू रानी  बच्चों की  सुरक्षा के प्रति बहुत गंभीर है।  इधर जैसे जैसे गर्मी बढ़ती जा रही थी कब्बू बिस्तर छोड़ कर जमीन पर सोने लगी। किन्तु बच्चों को बिस्तर पर ही रखती।  एक दिन रात में बहुत उमस थी हमने ऐसी  चालू कर दिया।  बाप रे कब्बू ने   दयनीय आवाज निकाल कर अपना मुंह ऐसी की तरफ उठाया जैसे कह रही हो  इसकी हवा मेरे बच्चों को बीमार कर देगी।  हमने ऐसी थोड़ी देर बंद रखा जैसे ही दुबारा चालू किया उसने फिर रोना आरम्भ कर दिया नतीजा हमे पंखे की हवा में ही सोना पड़ा।  



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