बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

Bholi

आखिर भोली माँ बन गयी


भोली के सात  नवजात बच्चे 

भोली मां बनने वाली है ये ख्याल ही मन को पुलकित कर जा रहा था डाक्टर ने 21 सितम्बर डिलीवरी डेट बताई थी। हम सभी उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जब  4  पैर वाले नन्हे - मुन्ने बच्चे घर में घूमेंगे।  लेकिन एक समस्या थी जिसके लिए हमने पहले सोचा नहीं किन्तु जैसे - जैसे दिन पास आ रहे थे वैसे - वैसे चिंता बढ़ने लगी क्योंकि 16 सितंबर को हमें तिरुपति जाना था और वापसी 22 सितंबर तक होनी थी। घर में भोली का ख्याल रखने के लिए बेटा - बहू थे लेकिन  उनकी शादी हुए ही बहुत कम दिन हुए थे अतः उन्हें बच्चे पैदा करवाने का कोई अनुभव नहीं था। जबकि ऐसी स्थिति में ये समझना अत्यंत आवश्यक था कि कब लेबर पेन उठना आरंभ होगा और कब डाक्टर को खबर करके बुलाना होगा। यू तो डाक्टर को पूरी स्थिति से अवगत करा दिया था फिर भी मानसिक दबाव था। बाहर जाने से पहले हमने भोली से कहा कि " भोली जब तक हम वापस न आ जाए तब तक तुम बच्चे मत देना।" शायद भोली मेरी मनोस्थिति समझ चुकी थी उसने एक आज्ञाकारी बच्ची की तरह मेरे आग्रह का पूर्णतया पालन किया और जब हम 22 को वापस आ गए उसी रात से उसे लेबर पेन आना आरंभ हो गया। डाक्टर को खबर दी उसने कम्पाउन्डर भेज दिया। जिसने आते ही भोली को ड्रिप लगाई और दर्द बढ़ाने की दवाई दी। एक तो भोली की प्रथम प्रसव पीड़ा ऊपर से तीन - तीन लड़कों को देखकर उसका दर्द गायब हो जा रहा था। हमने कम्पाउन्डर को समझाया 22 सितंबर की रात 10 बजे से भोली प्रसव वेदना से परेशान है और 23 की रात हो गई यानी की 24 घंटे हो चुके है तुम लोग उसको अकेले छोड़ दो,  जानवर है तो   क्या      
उसे भी शर्म लगती है। अकेले रहेगी वो ठीक बच्चा दे देगी। लेकिन कम्पाउन्डर  महोदय सुनने को ही तैयार नहीं, उनकी दलील कि मैंने कितने जानवरों की डिलीवरी करवाई है। भोली की हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे । आज 24 सितम्बर की सुबह ही बेटे ने डाक्टर को फोन किया और भोली की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया। डाक्टर ने उसे चेंबर लाने के लिए कहा। बेचारी भोली प्रसव पीड़ा के दौरान सफारी में बैठकर 15 किलोमीटर दूर डाक्टर के चेंबर में जब तक पहुंचती है तब तक उसका पहला बच्चा  गाड़ी में ही हो गया। दूसरा डाक्टर के चेंबर में। डाक्टर साहब ने उसे इतनी बुरी स्थिति में चेंबर में बुलवाया था इसलिए नहीं कि वे उसकी तकलीफ से द्रवित थे  बल्कि  उनके मन में तो कुछ और ही चल रहा था।  उन्होंने सुझाव दिया कि इसके 7 - 8 बच्चे होंगे और वे कम से कम 12 घंटे ले लेंगे, हम इतनी देर इंतजार नहीं कर सकते अतः अच्छा होगा कि इसका आप्रेशन कर दे ताकि बच्चे भी जल्दी हो जाए और इसे तकलीफ से भी मुक्ति मिल जाएगी। बेटा असमंजस की स्थिति में था उसने हमे फोन करके पूछा कि क्या करना चाहिए। हमने आप्रेशन के लिए सख्ती से मना कर दिया। हमे डाक्टर के इस प्रस्ताव पर अत्यंत क्रोध आ रहा था कि अत्यधिक पैसे कमाने की चाह ने इंसान को कितना संवेदनहीन बना दिया है। अभी तक महिलाओं के आप्रेशन के बारे में सुनते थे अब जानवरों के भी आप्रेशन से बच्चे होंगे।  ईश्वर ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा इसी लिए उसने जनने की विधि भी इस प्रकार बनाई की जितनी तकलीफ है बच्चे के पैदा होने के समय तक  ( प्रसव  पीड़ा मादा को मां बनाती है और उसे अपने बच्चे से जोड़ कर रखती अन्यथा बिना दर्द के पैदा होने वाले बच्चे मां के लिए महत्व ही नहीं रखेगे)  उसके बाद  मां स्वयं सक्षम हो जाती है अपने बच्चे की देख - रेख करने के लिए जबकि आप्रेशन से बच्चा पैदा होने के बाद मां की इतनी बुरी स्थिति हो जाती है कि वो महीनो तक स्वस्थ नहीं हो पाती।  यहां भोली कोई इंसान नहीं वरन् एक मूक पशु है जो अपनी तकलीफ बता भी नहीं पाती। अब तक भोली अपने दो बच्चों के साथ 108 सीढ़ियां चढ़ कर घर वापस आ गई। बार - बार होने वाली प्रसव वेदना और घर से डाक्टर के चेंबर, चेंबर से घर वापसी ने उसे निढाल कर दिया। किन्तु अपने दो नन्हे - मुन्नो को देखने की खुशी उसकी आंखों की चमक से जाहिर हो रही थी। रात 8 बजे तक सात बच्चे जन्म ले चुके थे जिनमें तीन मादा और 4 नर थे। बच्चे देखकर हम लोगो ने राहत की सांस ली कि अब भोली चैन से  खाएगी और सोएगी। लेकिन नई - नई मां बनी भोली अपने बच्चों को दुलराने में व्यस्त उसे ये भी समझ नहीं आ रहा कि उन्हें  दूध भी पिलाना है। हमने एक - एक बच्चे को पकड़ कर भोली की निप्पल से लगाया तो सब चुकुर चूकुर अपनी मां का दूध पीने लगे सिवाय एक मादा बच्ची के। इधर हमने गौर किया कि भोली कुछ खा नहीं रही है। दूसरी रात्रि यानी की ठीक 24 घंटे बाद भोली ने आठवें  मरे बच्चे को जन्म दिया।  उस बच्चे को भोली  की नजर से बचाकर हटा दिया वो बेवकूफ बच्चे गिनना तो जानती नहीं थी अतः उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन ये  देखकर  मेरा मन द्रवित हो गया  कि बेचारी भोली ने कितना नरक झेला है इस ममत्व को पाने के लिए। 


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