रविवार, 19 अप्रैल 2020

इनके बिना जिंदगी नहीं



कब्बू  अपने बच्चे के साथ 
कहते है चलने से शुगर कम होती है ये सच भी है  क्योंकि मेरी शुगर लगभग नॉर्मल रहती है पर ताज्जुब तो तब हुआ जब लगभग ढाई किलोमीटर चल कर आने के बाद घर में बैठे और कमजोरी महसूस हुई। सोचा शुगर फॉल कर गई होगी चेक किया तो 402। आश्चर्य तो अवश्य हुआ लेकिन नजर अंदाज कर दिया। दूसरे दिन इंफेक्शन का आभास हुआ तो  हमने  में  अपने बेटे से पूछा कि गणेश   ( रेस्टोरेंट का सेकंड कुक) को क्या यही बीमारी हुई थी उसने जवाब दिया मुंह तो उसका भी फूला हुआ था। अगला प्रश्न की उसे किस डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि दूसरे एम्प्लोई ने सी एम डी हॉल के पास बैठने वाले डाक्टर को दिखाया था जो 100 रुपए फीस लेता है उसकी दवाई से उसे आराम मिला है वैसे गणेश अभी छुट्टी पर है इसलिए कितना ठीक हुआ कहना मुश्किल है। मुझे लगा जब उसे आराम मिल सकता है तो हमे क्यों नहीं हमने भी 100 रुपए फीस पर डाक्टर को दिखाया और खुश होकर घर  आ गए । दूसरे दिन चेहरा कुछ और ही हो गया।  मजबूरन फैमिली डाक्टर के पास गए वो देखते ही बोले " हर्पीज जोस्टर" पता चला कि कभी बचपन में चिकीन पौक़्स हुई होगी उसी के जर्म्स फिर से सक्रिय हो गए है। डाक्टर ने सावधानी रखने को कहा और समझाया 6 महीने तक दर्द झेलना पड़ेगा।  " हुईए सोई जो राम रच राखा "  सोच कर घर आये । दवाइयां आ चुकी थी उन्हें समझ रहे थे कि तभी पतिदेव ने प्रवेश किया और चालू हो गए " कितनी बार समझाया की बिल्लियों को बिस्तर पर मत बिठाया करो ये अपने साथ कितनी बीमारियों को लेकर आती है लेकिन तुम्हे तो इन्हे अपने साथ सुलाना है, इनके मुंह से मुंह चिपका लेती हो, हम भी तो कुत्तों को प्यार करते है लेकिन उसके बाद हाथ धोते है।" मुझे लगा कि क्या ये सहानुभूति है , हमदर्दी है, डर है, चिंता है या विपक्ष की तरह मोदी पर हमला बोलने के लिए मौके की तलाश की तर्ज पर आक्रमण। हमने भी अपना फैसला सुना दिया " बिल्लियां घर से बाहर नहीं जाएगी " और दूसरे कमरे में शिफ्ट हो गए।  लेकिन इंफेक्शन को रोकने के लिए डाक्टर के अनुसार  कुत्ते बिल्ली, बच्चा सबसे दूर भी रहना था।
  बीमारी कि जब चर्चा हुई तो सबने अपने अपने अनुसार बीमारी का नाम और ठीक होने के नुस्खे बताना आरंभ कर दिया, जिसमें एक नाम था गलफुल्ली माता। 
अब दूसरा आदेश  पारित हुआ जब तक बीमार हो तुम कुत्ते और बिल्लियों  को चिकिन नहीं दोगी। ये मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था क्योंकि दो कुत्ते और दस बिल्लियों को खाना हिसाब से देना होता है ताकि कोई भूखा न रहे ये काम हम तब भी किसी के ऊपर नहीं छोड़ते जब हमारे यहां नवरात्रि में कलश स्थापना होती है और मेरा उपवास भी रहता है। सबसे ज्यादा सोचना पड़ता है अपनी दो पालतू बिल्लियों कोलू और ढिंकु के लिए क्योंकि वे संस्कारी और अनुशासित बिल्लियां है जंगली बिल्लियों की तरह छीन झपट कर खाना उन्हें नहीं आता।  हमने अपने बेटे को समझाया कि कैसे खाना देना है लेकिन वो छत पर सभी बिल्लियों के लिए खाना डाल आया और कुत्तों को अंदर वाली छत पर दे दिया नतीजा मेरी कोलू -  धिंकु भूखी रह गई।  बीमारी हालत में ही उठकर उन लोगो को दूध दिया। मन ही मन तय कर लिया कि इनकी भूख के साथ समझौता नहीं करेंगे और उसी दिन से इन लोगो को पहले की तरह से खाना देना आरंभ कर दिया। इधर कोलू जो मेरे संग रोज सोती थी इंफेक्शन बढ़ने के डर से साथ सुलाना बंद कर दिया। वो बेचारी दरवाजे के बाहर खड़ी होकर रोती। उसकी ये दशा हमसे देखी नहीं गई,  "भाड़ में गया इंफेक्शन"  दरवाजा खोल कर उसे अंदर कर लिया। वो बेचारी सर्दी के मारे इतनी सिकुड़ गई थी कि पूरी रात मेरी रजाई के अंदर हमसे चिपक कर सोती रही। बीमार हुए हमें 14 दिन  हो गए इंफेक्शन ठीक होने में समय लग रहा है लेकिन मेरे  मूक बच्चे खुश है क्योंकि उन्हें मेरा प्यार मिल रहा है। 





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