मंगलवार, 13 सितंबर 2022



 कब्बी,  मां बनने का सुख 


कितने दर्द से होकर गुजरना होता है, कितने आंसुओं को पीना होता है , हर  सांस आखिरी सांस लगती है फिर भी कोशिश नन्हों को दुनियां में लाने की रहती है। मातृत्व इसी को कहते है, अपनी  पूरी जिंदगी किसी के लिए समर्पित  कर देना।   किसी की खातिर समर्पण- अर्पण, यहीं तो कुदरत ने सिखाया है। 

मेरी नन्ही  कब्बी  भी कुछ दिनों से पेट फुलाए घूम रही थी। ( बिल्लिया दो महीने में बच्चे देती है) उसको गर्भवती देखकर हमने उसका पूरा ख्याल सोने से लेकर उसके खाने तक का रखना आरंभ कर दिया।  वो स्वभाव से बहुत ही सीधी है, अगर बाकी बिल्लियां खाना खा रही है तो वो प्रतीक्षा कर लेगी लेकिन चीकिंन के लिए झपट्टा नहीं मारेगी। अतः हम उसे अलग से चिकिंन खाने के लिए देते। 

 दो दिनों से हम गौर कर रहे थे कि  कब्बी  बच्चे देने के लिए जगह ढूंढ़ रही है। ये देख कर हमने एक दफ्ती वाला मजबूत डब्बा खोज कर निकाला और मोटा चादर बिछा कर उसके लिए जच्चा कक्ष  तैयार कर दिया।  कब्बी ने भी अपने नए तैयार घर को पसंद कर लिया। कब्बी ने समय तीन नन्हे -मुन्नो को जन्म दिया।    

चूँकि वो पहली बार माँ बनी थी इसलिए  जब कोई उसके बच्चों को छूता तो वो बहुत ही कातर स्वर निकाल कर हमलोगो को रोकने की कोशिश करती। और उसके बच्चे भी इतने बदमाश वो भी इतना जोर से चिल्लाते कि बेचारी कब्बी दुखी हो जाती।  

                                 

हम लोग भी उसे दुखी नहीं करते।  जब तक वो कमरे में रहती , हम लोग बच्चों को हाथ नहीं लगाते।  उन नन्हे - मुन्नो को हम तभी गोद लेते जब वो रूम के बाहर गई हुई होती। 


कब्बी का दुबारा गर्भवती होना : 

अभी छोटे बच्चे दो महीने के भी नहीं हुए थे  की हमने गौर किया की कब्बी के बच्चे जैसे ही उसके पास पहुंचते वो उनपर गुर्रा पड़ती।  कुछ दिनों के बाद उसका फूला पेट नजर आने लगा।  घर में पहले से ही कब्बी  के तीन बच्चें थे ऊपर से ४ बड़ी बिल्लियां और अब इसका दूसरी बार गर्भ धारण करना , मेरे लिए परेशानी का कारण बनने वाला था।  

जैसे ही घर के सदस्यों को उसके दुबारा बच्चा देने की जानकारी हुई वे सब आपे - बे आपे होने लगे।  उन लोगो ने हमें सलाह दी कि हम कब्बी से दुरी बना ले।  कब्बी भी मेरे रूखे व्यवहार से अनभिज्ञ नहीं थी किन्तु जैसे -जैसे  बच्चा देने का समय पास आ रहा था वो मेरे करीब आकर बैठना आरम्भ कर दी। 

 एक दिन भावावेश में मैंने कब्बी से कहा की : " तुम घर में बच्चों को जन्म मत देना। "  बेचारी कब्बी मेरी गोद में चुपचाप बैठी रही।  कुछ दिन बाद वो एक दिन आई और मेरा कपडा पकड़ कर कातर स्वर में म्याऊ - म्याऊ करने लगी।  हमने उस पर ध्यान नहीं दिया।  लेकिन देखा की वो बेचारी मेरे इर्द -गिर्द घूम रही है जैसे हमसे कह रही हो कि वो इस हालत में कहाँ जाएगी।


  मुझे उस पर तरस आ गया और हमने फिर से उसके लिए घर बना दिया जिसमे उसने ख़ुशी -ख़ुशी तीन बच्चों को फिर से जन्म दिया जिनका नाम हमने   इक्की , दुक्की ,तिक्की रखा। ये बच्चे बहुत ही सीधे किन्तु अक्लमंद थे। 


                                      









  
 

शनिवार, 10 सितंबर 2022

तू कितना बुद्धिमान है..... टिक्कू 

 

Kabbu

जैसे जैसे कब्बू बिल्ली के बच्चे बड़े हो रहे थे वैसे वैसे उनकी शैतानियां भी बढ़ रही थी । उन नन्हे मुन्नों की बदमाशियां, उछल कूद जितना दिल को लुभाती थी उतनी ही सूसू पॉटी रुलाती थी। अपनी व्यथा से छुटकारा पाने के लिए अब हमने उन्हें घर के बाहर खाना देना आरंभ कर दिया।  और एक दो घंटे बाहर ही रखते ताकि वे अपना पेट खाली कर ले उसके  बाद हम उन्हें अंदर करते। लेकिन उन्हें ये देश  निकाला स्वीकार नहीं था अतः वे दरवाजे के पास खड़े होकर रोते हम तरस खा कर उन्हें अंदर करते जैसे ही अंदर आते वैसे ही वे सब इधर उधर कोने में या सोफे पर पेट खाली कर लेते। स्थिति ये की घर के हेल्पर तक पॉटी साफ नहीं करते एक हम  बेवकूफ जो भावनाओं  और उनके प्यार के वशीभूत सारे दिन सफाई अभियान में जुटे रहते । बच्चे बाहर रहने लगे तो अक्सर अपनी मां के साथ घूमने चले जाते किन्तु तिक्का ( बिल्ला) अपनी मां के साथ नहीं जाता । इसका कारण एक तो उसका बहुत शांत होना दूसरा बिल्ला होने के कारण बड़े बिल्ले उसे मारते ( जिस तरह प्रत्येक शेर का अपना क्षेत्र होता है और किसी दूसरे शेर को घुसने की अनुमति नहीं होती वैसे ही एक  बिल्ले के क्षेत्र में दूसरा बिल्ला नहीं रह सकता)
Tikku 

          एक दिन रात में उसे अन्दर करना हम भूल गए परिणाम वो अपनी मां के साथ घूमने चला गया। सवेरे हमने देखा कि टिक्कू नहीं है। अब हमको चिंता हो गई कि नन्ही सी जान कहां भटक रही होगी, पता नहीं कुछ खाया भी या भूखी है। मन में बुरे विचार आते की कही किसी दुर्घटना का शिकार न हो गई हो। अब हमने उसका नाम लेकर पुकारना आरंभ किया। 10 मिनट के अंदर ही वो म्याऊ म्याऊ करते मेरे घर के सामने की बिल्डिंग की मुंडेर पर चल रहा था। उस बिचारे को समझ में नहीं आ रहा था कि वो मेरे पास कैसे आए । रास्ता न मिलने पर वो बदहवासी में और जोर जोर से म्याऊं म्याऊं करने लगा और साथ ही मदद की उम्मीद से हमारी तरफ देखने लगा। हमने इशारा किया की सामने की बाउंड्री से एक दीवार की तरफ जहां कुछ ईंट लगी हुई थी उसने तुरंत समझदार बच्चे की तरह बात मान कर उन ईटो को पकड़ कर दीवार चढ़ कर मेरे बरामदे की रेलिंग पर आ गया। हमने उसे पाईप दिखाया कि उसे पकड़ कर मेरे पास आ जाए लेकिन उस नन्ही सी जान के लिए ये मुश्किल था। अपने अभियान में विफल होने पर वो जोर जोर से रो रहा था। हमने एक चादर  के निचले हिस्से में गांठ बांधी और लटकाया जिससे कि वो उसे पकड़ ले और हम ऊपर  अपने पास खींच ले । अब हमने अपने दुप्पटे में बाल्टी बांधी और उसे लटकाया बाल्टी देख उसने मेरी तरफ देखा हमने इशारा किया कि इसमें बैठ जाओ

                                          

उसने पहले बाल्टी के अंदर झांका फिर पांच तल्ले से नीचे की तरफ देखा। हम समझ गए की वो ये जानने की कोशिश कर रहा है कि अगर उसका संतुलन डगमगा गया तो नीचे गिरने के बाद उसकी हालत क्या होगी। 45 मिनट से ज्यादा हो गया था इस मशक्कत में, हमे लगा कि हम उसे निकालने में सफल नहीं होंगे अब हमने उसे देखकर कहा कि - " टिक्कु बाल्टी पकड़ कर आ जाओ वरना हम निकाल नहीं पाएंगे ।" 

                                        

ऊपर वाले की मर्जी कहे या टिक्कू की बुद्धिमानी उसने बाल्टी के किनारों को अपने नन्हे हाथों से जोर से पकड़ लिया 

           

और हमने बिना पल गवाएं धीरे धीरे बाल्टी अपनी ओर खींच कर तुरंत हाथ से पकड़ा ये सोचकर कि कहीं ये अपनी पकड़ ढीली न कर दे। उसे ऊपर ला कर अपने से चिपका लिया कुछ पल में  ही उसकी तेज धड़कनों ने काबू पा लिया और वो दौड़ कर जहां खाना - दूध रखते है वहां जाकर अपनी भूख शांत करने लगा। उसको देखकर हमें उतनी ही शांति मिली जितनी की अपने बच्चे को देखकर मिलती है। परंतु सबसे अधिक खुशी तो उसकी बुद्धिमानी देखकर हुई की मेरा छोटू कितना अक्लमंद है।

My lovely Tikku 

           And one day Tikku ended his life by suddenly falling down while playing on the terrace.







गुरुवार, 25 अगस्त 2022

अकुई हार्ट अटैक की शिकार

नन्हीं सी जान अकुई 

आकुई तीन महीने की हो चुकी है, अब वह भी छोटे बच्चों की तरह तांक - झांक कर दुनिया देखना चाहती है इसी लिए कभी इस दीवार पर तो कभी  उस दीवार पर कभी दूसरी छत पर चढ़ती रहती है । किन्तु जब वह  मुख्य रोड वाली दीवार पर चढ़ी  और नीचे झांका तो उसकी आत्मा कांप गई। छह तल्ले नीचे  वो भी पहले की बनी इमारत जिसका एक तल्ला दो तल्ले के बराबर है। आज अकुइ बहुत ही खुश होकर खेल रही थी क्योंकि रोज छत पर आने से उसका डर निकलने लगा था। वैसे भी जितनी देर हम लोग छत पर रहते वो स्वयं को बहुत ही सुरक्षित महसूस करती। उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हम अपने पालतू चार पैरों वाले सदस्यों ( भोली - दृष्टा ) को ऊपर नहीं लाते। जब अक़ुई  - मकुुई एक घंटे खेल लेते तब उन्हें वहां से हटा कर छत पर बने स्टोर में रख देते और भोली - दृष्टा को बुला लेते। आज भोली ने  न जाने कैसे कमरे का  दरवाजा खोल लिया और दोनों मां - बेटी राजधानी की तरह छत पर दौड़ते हुए  आ  पहुंची और आते ही अकुईं की तरफ धावा बोल दिया । आकुइ जो अपनी मस्ती में खेल रही थी  पहले तो एक दम सहम गई फिर वो ठहरी शेरकी मौसी उसने अपने को गुस्से से फुला कर दुगुना कर लिया और खे खे कर दोनों को पीछे धकेल खुद सड़क की तरफ वाली दीवार पर चढ़ गई । परन्तु भोली - दृष्टा ने भी  कसम खा ली थी उसे डराने की अतः वे उसकी तरफ बढ़ने लगी। अकुई  भागने का रास्ता न पाकर हमारी बिल्डिंग से सटी दूसरी बिल्डिंग की तरफ जाने को जैसे ही उद्धत हुई कि उसे समझ आ गया कि वो दूसरी बिल्डिंग की तरफ जा ही नहीं सकती क्योंकि दोनों बिल्डिंगों के बीच में काफी अंतर  था।  अब उसकी स्थिति  एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई वाली थी तब तक हम पहुंच गए और भोली  - दृष्टा को डराकर हटाते हुए अकुई  को गोद में उठा लिया और उठाकर जहां पानी की टंकी  रखी थी वहां छोड़ दिया। लेकिन ये क्या अकुई तो गिर पड़ी और बहुत ही बुरी तरीके की आवाज निकालने लगी। उसका बदन भी  अकड़ने लगा। उसकी हालत देख हमे पल भर के लिए लगा कि इस नन्ही सी जान को  हार्ट अटैक पड़ा है साथ ही  एक पुरानी बिल्ली की याद आ गई जिसकी मरते समय ऐसी ही हालत  थी। हमने उसके साथ बात करना और उसे प्यार से सहलाना आरंभ कर दिया। इधर भोली - दृष्टा भी घबडा गए और उसी के पास आकर उसे सूंघने लगे। भोली - दृष्टा को देखकर हमे लगा कि इनकी उपस्थिति से अकुई की बची हुई सांसे भी निकल जाएगी अतः हमने उन्हें कस कर डांटा और वहां से भगा दिया।  चार - पांच मिनट के प्रयास के बाद वो थोड़ी सामान्य हुई। उसे गोद में उठा कर दुलराते हुए ये अहसास कराया की वो सुरक्षित है तब जाकर उसकी सांस में सांस आई। किन्तु उस पूरे  दिन के लिए वो  सामान्य रूप में खेल नहीं पाई । सहमी सी डरी सी मेरे इर्द - गिर्द ही घूमती रही।