अगले पल, क्या ?
कल्ली डोरमैट पर एक नन्हे से बच्चे को लेकर बैठी थी, दरवाजा खुलते ही उसने हमको देखा और बड़े ही कातर स्वर में आवाज निकाली जैसे कहना चाह रही हो कि ये उसके जिगर का टुकड़ा है। बच्चे का निश्चल शरीर देखकर पलभर को लगा कि क्या ये बच्चा जीवित है? 2 -4 मिनट इंतजार करने के बाद कल्ली ने अपने बच्चे को मुंह से पकड़ा और लेकर चली गई।
कल्ली और उसका बच्चा आयी - गई बात हो गई। सहसा 21 जनवरी को कल्ली अपने 15 दिन के बच्चे को लेकर फिर से हाजिर हो गई दोनों मां - बच्चा मुख्य द्वार के डोरमैट पर बैठे हुए थे। उस नन्हे से बच्चे को देखकर हमें बहुत खुशी हो रही थी लेकिन हाथ लगाने से डर रहे थे कि कहीं कल्ली अपने बच्चे को छोड़ न दे ( जैसा कि बिल्लियों के बारे में सुनते है ) लेकिन वो नन्ही सी जान अपनी मां के पास से सरक कर दूसरी सीढ़ी पर जा टिकीं। कल्ली अपने बच्चे को ठंड के समय सीढ़ी पर पड़े देख मेरी तरफ मुड़ी और शिकायती लहजे में रोई जैसे कह रही हो मेरा बच्चा सर्दी में मर जाएगा। उस नन्ही जान को हमने जब अपने हाथों में उठाया तो मेरी सारी ममता उमड़ पड़ी उसे दिल से लगाकर कितनी खुशी मिली ये शब्द बयान नहीं कर सकते थे। ऊपर सीढ़ी के एक कोने में मोटा वाला डोरमैट बिछा कर बच्चे और उसकी मां को रख दिया । अब कल्ली खुश थी और उसका बच्चा भी। भोली एवम् दृष्टा ( कुत्ते) यू तो जितनी बिल्लियां रहती है उनसे परिचित है। उठना - बैठना, खाना एक संग ही होता है किन्तु मां बनी बिल्ली ये कैसे विश्वास कर ले की ये उसके बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। अतः वो इन्हे देखते ही अपने रौद्र रूप में आ जाती और ये कुत्ता प्रजाति के रूप में लेकिन फिर भी कल्ली आश्वस्त थी की उसका बच्चा सुरक्षित है। भोली , दृष्टा अगर उसके पास जाती तो कल्ली इंसानों की तरह से उनके झापड़ लगाती। मेरी कोशिश ये रहती की ये मेरे संग छत पर जाए और मेरे संग ही वापस आए। एक बार तो मेरी बात न मानने पर दोनों ने हमसे मार भी खाई जिसमें भोली को अगर जोर से डांट दे तो वो सहम जाती है लेकिन दृष्टा में इतना बचपना है कि मार खाने के बाद भी वो अपनी मर्जी का करती है। पूरा एक दिन निकल गया जच्चा - बच्चा दोनों ही स्वस्थ थे। रात के नौ बजे हम एक कार्यक्रम से लौटे तो देखते है कि चैनल गेट के पास कल्ली का बच्चा पड़ा है और भोली उसके पास खड़ी उसे चाट रही है। उस छोटी सी बच्ची के लिए भोली का ये प्यार ही बहुत घातक था। इस दृश्य ने मुझे अत्यन्त क्रोधित कर दिया। सबसे पहले हमने बच्चे को उठाया और फिर भोली को बहुत कस के डांटा कि तुम बच्चा ऊपर से लेकर नीचे कैसे आई तुम्हे छूने के लिए मना किया था न। तत्पश्चात पूरे परिवार को आड़े हाथो लिया कि तुम लोग मुख्य द्वार बंद करके बैठे हो और ये भोली बाहर बिल्ली के बच्चे को ऊपर से उठा लाई। भोली के कारण सुन्न हुए बच्चे में अब तक जान आ गई और वो अपनी मासूम आवाज में रोने लगी। उस समय रात्रि के साढ़े नौ बजे थे। हमने उसे और उसकी मां को गोद में उठाकर उनके बिस्तर तक पहुंचा दिया और थोड़ी देर रुक कर इंतजार करने लगे कि कल्ली इसके साथ क्या व्यवहार करती है (मन तो मेरा कर रहा था की इसे अपने कमरे में जगह दे दे फिर ख्याल आया कि वैसे ही मुझे बिल्ली के परिवार से जोड़ा जाता है, क्योंकि एक बार मायापुर में एक बिल्ली जो गर्भ से थी हमें देखकर इतनी कातर आवाज में रोई कि उसका रोना देखकर हम तुरंत समझ गए कि ये बहुत भूंखी है हमने उसे लड्डू खरीद कर खिलाया जिसे देखकर सबने मेरा मजाक उड़ाना आरंभ कर दिया) देखा कि कल्ली इसे चाट रही है ( बिल्ली, कुत्तों के दुलार का तरीका) तब हम अपने सीटिंग जोन में आकर फिर से बैठ गए जहां हमारे दोनों बेटे, बेटी, बहू सभी मिलकर गप - शप कर रहे थे। 10 बजे हमने उठकर अपने प्यारे बच्चों को दुबारा चिकिन दिया और मुख्य द्वार बंद कर लिया ताकि भोली - दृष्टा बिल्लियों के चिकिन को ना खा जाए। रात साढ़े दस पर सुमंत ( हेल्पर) आया तो मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों न कल्ली और उसके बच्चे को देख कर आए कि वो क्या कर रहे है हमने ये बात सबके सामने जैसे ही बोली कि सुमंत बोल पड़ा - " बिल्ली का बच्चा तो मरा पड़ा है, कोई उसको खा गया।" ये सुनते ही हम तुरंत मुख्य द्वार खोल कर सीढ़ी की तरफ आए तो देखा कि वो मासूम दो टुकड़ों में पड़ा हुआ है, देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने धारदार हथियार से एक झटके में उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी हो। इस मार्मिक दृश्य ने मेरे हृदय को विचलित कर दिया एक घंटे पहले वो मेरी गोद में था और कहा ये कटा मृत शरीर। सवाल था कि इतनी निर्मम हत्या उसकी की किसने। रात हो या दिन कोई भी पांच तल्ले चढ़ कर बिल्ली का बच्चा मारने नहीं आएगा। अगर बिल्ले ने मारा तो ऐसे कैसे मारा की सर और धड़ दोनों अलग हो गए। और एक भी बिल्ली ने मुंह से आवाज नहीं निकाली जबकि उसकी मां कल्ली जहां बच्चा मरा पड़ा था उस जगह से चार सीढ़ी ऊपर बैठी थी और दो बिल्लियां नीचे वाली सीढ़ी पर। बिल्लियों की आदत होती है कि अगर उनका कोई बच्चा बहुत कमजोर है या उसे किसी अजनबी ने छू लिया तो वो उसे छोड़ देती हैं। इधर दोनों कुत्ते जो जरा सी आहट पर पूरी बिल्डिंग सर पर उठा लेते है, यहां एक मासूम सी जान खत्म हो गई और इन्हे तनिक भी हवा नहीं लगी और न ही हम लोगो को जो चंद कदमों के फासले पर थे। जो भी हो ये अगला पल बड़ा ही रहस्यमई होता है क्या इंसान क्या जीव - जंतु कोई नहीं जानता कि आने वाला अगला पल उसके लिए क्या सौगात लाएगा। मन बहुत ही दुखी था लेकिन बस में कुछ नहीं। आज सुबह से ही कल्ली अपने बच्चे को खोज रही है और बार - बार मेरे आगे - पीछे घूम रही है जब हम उसे प्यार से पुचकारते तब वह मुंह खोल कर निरीह आवाज निकालती जैसे पूछ रही हो कि बड़े विश्वास के साथ तुम्हारे पास आए थे और तुम उस विश्वास को रख भी न सकी।