मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

अगला पल, और नन्ही सी जान


अगले पल, क्या ?



कल्ली डोरमैट पर एक नन्हे से बच्चे को लेकर बैठी थी, दरवाजा खुलते ही उसने हमको देखा और बड़े ही कातर स्वर में आवाज निकाली जैसे कहना चाह रही हो कि ये उसके जिगर का टुकड़ा है। बच्चे का निश्चल शरीर देखकर पलभर को लगा कि क्या ये बच्चा जीवित है?  2 -4 मिनट इंतजार करने के बाद कल्ली ने अपने बच्चे को मुंह से पकड़ा और लेकर चली गई।
कल्ली और उसका बच्चा आयी - गई बात हो गई। सहसा 21 जनवरी को कल्ली अपने 15 दिन के बच्चे को लेकर फिर से हाजिर हो गई दोनों मां - बच्चा मुख्य द्वार के डोरमैट पर बैठे हुए थे। उस  नन्हे से बच्चे को देखकर हमें बहुत खुशी हो रही थी लेकिन हाथ लगाने से डर रहे थे कि कहीं  कल्ली अपने बच्चे को छोड़ न दे ( जैसा  कि बिल्लियों के बारे में सुनते है ) लेकिन वो नन्ही सी जान अपनी मां के पास से सरक कर दूसरी सीढ़ी पर जा टिकीं। कल्ली अपने बच्चे को ठंड के समय सीढ़ी पर पड़े देख मेरी तरफ मुड़ी और शिकायती लहजे में रोई जैसे कह रही हो मेरा बच्चा सर्दी में मर जाएगा। उस नन्ही जान को हमने जब   अपने हाथों में उठाया तो मेरी सारी ममता उमड़ पड़ी उसे दिल से लगाकर कितनी खुशी मिली ये शब्द बयान नहीं कर सकते थे। ऊपर  सीढ़ी के एक कोने में मोटा वाला डोरमैट बिछा कर   बच्चे और उसकी मां को रख दिया । अब कल्ली खुश थी और उसका बच्चा भी। भोली एवम् दृष्टा ( कुत्ते) यू तो जितनी बिल्लियां रहती है उनसे परिचित है। उठना - बैठना, खाना एक संग ही होता है किन्तु मां बनी बिल्ली ये कैसे विश्वास कर ले की ये उसके बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। अतः वो इन्हे देखते ही अपने रौद्र रूप में आ जाती और ये कुत्ता प्रजाति के रूप में लेकिन फिर भी कल्ली आश्वस्त थी की उसका बच्चा सुरक्षित है।  भोली , दृष्टा अगर उसके पास जाती तो कल्ली इंसानों की तरह से उनके झापड़ लगाती। मेरी कोशिश ये रहती की ये मेरे संग छत पर जाए और मेरे संग ही वापस आए। एक बार तो मेरी बात न मानने पर दोनों ने हमसे मार भी खाई जिसमें भोली को अगर जोर से डांट दे तो वो सहम जाती है लेकिन दृष्टा में इतना बचपना है कि मार खाने के बाद भी वो अपनी मर्जी का करती है। पूरा एक दिन निकल गया जच्चा - बच्चा दोनों ही स्वस्थ थे। रात के नौ बजे हम एक कार्यक्रम से लौटे तो देखते है कि चैनल गेट के पास कल्ली का बच्चा पड़ा है और भोली उसके पास खड़ी उसे चाट रही है। उस छोटी सी बच्ची के लिए भोली का ये प्यार ही बहुत घातक था। इस दृश्य ने मुझे अत्यन्त क्रोधित कर दिया। सबसे पहले हमने बच्चे को उठाया और फिर  भोली को बहुत कस के डांटा कि तुम बच्चा ऊपर से लेकर नीचे कैसे आई तुम्हे छूने के लिए मना किया था न। तत्पश्चात पूरे परिवार को आड़े हाथो लिया कि तुम लोग मुख्य द्वार बंद करके बैठे हो और ये भोली बाहर बिल्ली के बच्चे को ऊपर से उठा लाई। भोली के कारण सुन्न हुए बच्चे में अब तक जान आ गई और वो अपनी मासूम आवाज में रोने लगी। उस समय रात्रि के साढ़े नौ बजे थे। हमने उसे  और उसकी मां को गोद में उठाकर उनके बिस्तर तक पहुंचा दिया और थोड़ी देर रुक कर इंतजार  करने लगे कि कल्ली इसके साथ क्या व्यवहार करती है   (मन तो मेरा कर रहा था की इसे अपने कमरे में जगह दे दे फिर ख्याल आया कि वैसे ही  मुझे बिल्ली के परिवार से जोड़ा जाता है, क्योंकि एक बार मायापुर में एक बिल्ली जो गर्भ से  थी हमें देखकर इतनी कातर आवाज में रोई  कि उसका रोना देखकर हम तुरंत समझ गए कि ये  बहुत भूंखी है हमने  उसे लड्डू खरीद कर खिलाया जिसे देखकर सबने मेरा मजाक उड़ाना आरंभ कर दिया)   देखा कि कल्ली इसे चाट रही है ( बिल्ली, कुत्तों के दुलार का तरीका)  तब हम अपने सीटिंग जोन में आकर फिर से बैठ गए जहां  हमारे दोनों बेटे, बेटी,  बहू सभी मिलकर गप - शप कर रहे थे।  10 बजे हमने उठकर अपने प्यारे बच्चों को दुबारा चिकिन दिया और मुख्य द्वार बंद कर लिया ताकि भोली - दृष्टा बिल्लियों के चिकिन को ना खा जाए। रात साढ़े दस पर सुमंत ( हेल्पर) आया तो मेरे मन में ख्याल आया कि  क्यों न कल्ली और उसके बच्चे को देख कर आए कि वो क्या कर रहे है हमने ये बात सबके सामने जैसे ही बोली कि सुमंत बोल पड़ा - " बिल्ली का बच्चा तो मरा पड़ा है, कोई उसको खा गया।" ये सुनते ही हम तुरंत मुख्य द्वार खोल कर सीढ़ी की तरफ आए तो देखा कि वो मासूम दो टुकड़ों में पड़ा हुआ है, देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने धारदार हथियार  से एक झटके में उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी हो। इस मार्मिक दृश्य ने मेरे  हृदय को विचलित कर दिया एक घंटे पहले वो मेरी गोद में था और कहा ये कटा मृत शरीर। सवाल था कि इतनी निर्मम हत्या उसकी की किसने। रात  हो या दिन  कोई  भी पांच तल्ले चढ़ कर बिल्ली का बच्चा मारने नहीं आएगा। अगर बिल्ले ने मारा तो ऐसे कैसे मारा की सर और धड़ दोनों अलग हो गए। और  एक भी बिल्ली ने मुंह से आवाज नहीं निकाली जबकि उसकी मां कल्ली जहां बच्चा मरा पड़ा था उस जगह से चार सीढ़ी  ऊपर बैठी थी और दो बिल्लियां नीचे वाली सीढ़ी पर। बिल्लियों की आदत होती है कि अगर उनका कोई बच्चा बहुत कमजोर है या उसे किसी अजनबी ने छू लिया तो वो उसे छोड़ देती हैं। इधर  दोनों कुत्ते जो जरा सी आहट पर पूरी बिल्डिंग सर पर उठा लेते है, यहां एक मासूम सी जान खत्म हो गई और इन्हे तनिक भी हवा नहीं लगी  और न ही हम लोगो को जो चंद कदमों के फासले पर थे। जो भी हो ये अगला पल बड़ा ही रहस्यमई होता है क्या इंसान क्या जीव - जंतु कोई नहीं जानता कि आने वाला अगला पल उसके लिए क्या सौगात लाएगा।  मन बहुत ही दुखी था लेकिन बस में कुछ नहीं।  आज सुबह  से ही कल्ली अपने बच्चे को खोज रही है और बार - बार  मेरे आगे - पीछे घूम रही है जब हम  उसे प्यार से पुचकारते तब  वह मुंह खोल कर निरीह आवाज निकालती  जैसे पूछ रही हो कि बड़े विश्वास के साथ तुम्हारे पास आए थे और तुम उस विश्वास को रख भी न सकी।



बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

Bholi

आखिर भोली माँ बन गयी


भोली के सात  नवजात बच्चे 

भोली मां बनने वाली है ये ख्याल ही मन को पुलकित कर जा रहा था डाक्टर ने 21 सितम्बर डिलीवरी डेट बताई थी। हम सभी उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जब  4  पैर वाले नन्हे - मुन्ने बच्चे घर में घूमेंगे।  लेकिन एक समस्या थी जिसके लिए हमने पहले सोचा नहीं किन्तु जैसे - जैसे दिन पास आ रहे थे वैसे - वैसे चिंता बढ़ने लगी क्योंकि 16 सितंबर को हमें तिरुपति जाना था और वापसी 22 सितंबर तक होनी थी। घर में भोली का ख्याल रखने के लिए बेटा - बहू थे लेकिन  उनकी शादी हुए ही बहुत कम दिन हुए थे अतः उन्हें बच्चे पैदा करवाने का कोई अनुभव नहीं था। जबकि ऐसी स्थिति में ये समझना अत्यंत आवश्यक था कि कब लेबर पेन उठना आरंभ होगा और कब डाक्टर को खबर करके बुलाना होगा। यू तो डाक्टर को पूरी स्थिति से अवगत करा दिया था फिर भी मानसिक दबाव था। बाहर जाने से पहले हमने भोली से कहा कि " भोली जब तक हम वापस न आ जाए तब तक तुम बच्चे मत देना।" शायद भोली मेरी मनोस्थिति समझ चुकी थी उसने एक आज्ञाकारी बच्ची की तरह मेरे आग्रह का पूर्णतया पालन किया और जब हम 22 को वापस आ गए उसी रात से उसे लेबर पेन आना आरंभ हो गया। डाक्टर को खबर दी उसने कम्पाउन्डर भेज दिया। जिसने आते ही भोली को ड्रिप लगाई और दर्द बढ़ाने की दवाई दी। एक तो भोली की प्रथम प्रसव पीड़ा ऊपर से तीन - तीन लड़कों को देखकर उसका दर्द गायब हो जा रहा था। हमने कम्पाउन्डर को समझाया 22 सितंबर की रात 10 बजे से भोली प्रसव वेदना से परेशान है और 23 की रात हो गई यानी की 24 घंटे हो चुके है तुम लोग उसको अकेले छोड़ दो,  जानवर है तो   क्या      
उसे भी शर्म लगती है। अकेले रहेगी वो ठीक बच्चा दे देगी। लेकिन कम्पाउन्डर  महोदय सुनने को ही तैयार नहीं, उनकी दलील कि मैंने कितने जानवरों की डिलीवरी करवाई है। भोली की हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे । आज 24 सितम्बर की सुबह ही बेटे ने डाक्टर को फोन किया और भोली की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया। डाक्टर ने उसे चेंबर लाने के लिए कहा। बेचारी भोली प्रसव पीड़ा के दौरान सफारी में बैठकर 15 किलोमीटर दूर डाक्टर के चेंबर में जब तक पहुंचती है तब तक उसका पहला बच्चा  गाड़ी में ही हो गया। दूसरा डाक्टर के चेंबर में। डाक्टर साहब ने उसे इतनी बुरी स्थिति में चेंबर में बुलवाया था इसलिए नहीं कि वे उसकी तकलीफ से द्रवित थे  बल्कि  उनके मन में तो कुछ और ही चल रहा था।  उन्होंने सुझाव दिया कि इसके 7 - 8 बच्चे होंगे और वे कम से कम 12 घंटे ले लेंगे, हम इतनी देर इंतजार नहीं कर सकते अतः अच्छा होगा कि इसका आप्रेशन कर दे ताकि बच्चे भी जल्दी हो जाए और इसे तकलीफ से भी मुक्ति मिल जाएगी। बेटा असमंजस की स्थिति में था उसने हमे फोन करके पूछा कि क्या करना चाहिए। हमने आप्रेशन के लिए सख्ती से मना कर दिया। हमे डाक्टर के इस प्रस्ताव पर अत्यंत क्रोध आ रहा था कि अत्यधिक पैसे कमाने की चाह ने इंसान को कितना संवेदनहीन बना दिया है। अभी तक महिलाओं के आप्रेशन के बारे में सुनते थे अब जानवरों के भी आप्रेशन से बच्चे होंगे।  ईश्वर ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा इसी लिए उसने जनने की विधि भी इस प्रकार बनाई की जितनी तकलीफ है बच्चे के पैदा होने के समय तक  ( प्रसव  पीड़ा मादा को मां बनाती है और उसे अपने बच्चे से जोड़ कर रखती अन्यथा बिना दर्द के पैदा होने वाले बच्चे मां के लिए महत्व ही नहीं रखेगे)  उसके बाद  मां स्वयं सक्षम हो जाती है अपने बच्चे की देख - रेख करने के लिए जबकि आप्रेशन से बच्चा पैदा होने के बाद मां की इतनी बुरी स्थिति हो जाती है कि वो महीनो तक स्वस्थ नहीं हो पाती।  यहां भोली कोई इंसान नहीं वरन् एक मूक पशु है जो अपनी तकलीफ बता भी नहीं पाती। अब तक भोली अपने दो बच्चों के साथ 108 सीढ़ियां चढ़ कर घर वापस आ गई। बार - बार होने वाली प्रसव वेदना और घर से डाक्टर के चेंबर, चेंबर से घर वापसी ने उसे निढाल कर दिया। किन्तु अपने दो नन्हे - मुन्नो को देखने की खुशी उसकी आंखों की चमक से जाहिर हो रही थी। रात 8 बजे तक सात बच्चे जन्म ले चुके थे जिनमें तीन मादा और 4 नर थे। बच्चे देखकर हम लोगो ने राहत की सांस ली कि अब भोली चैन से  खाएगी और सोएगी। लेकिन नई - नई मां बनी भोली अपने बच्चों को दुलराने में व्यस्त उसे ये भी समझ नहीं आ रहा कि उन्हें  दूध भी पिलाना है। हमने एक - एक बच्चे को पकड़ कर भोली की निप्पल से लगाया तो सब चुकुर चूकुर अपनी मां का दूध पीने लगे सिवाय एक मादा बच्ची के। इधर हमने गौर किया कि भोली कुछ खा नहीं रही है। दूसरी रात्रि यानी की ठीक 24 घंटे बाद भोली ने आठवें  मरे बच्चे को जन्म दिया।  उस बच्चे को भोली  की नजर से बचाकर हटा दिया वो बेवकूफ बच्चे गिनना तो जानती नहीं थी अतः उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन ये  देखकर  मेरा मन द्रवित हो गया  कि बेचारी भोली ने कितना नरक झेला है इस ममत्व को पाने के लिए।