गुरुवार, 25 अगस्त 2022

अकुई हार्ट अटैक की शिकार

नन्हीं सी जान अकुई 

आकुई तीन महीने की हो चुकी है, अब वह भी छोटे बच्चों की तरह तांक - झांक कर दुनिया देखना चाहती है इसी लिए कभी इस दीवार पर तो कभी  उस दीवार पर कभी दूसरी छत पर चढ़ती रहती है । किन्तु जब वह  मुख्य रोड वाली दीवार पर चढ़ी  और नीचे झांका तो उसकी आत्मा कांप गई। छह तल्ले नीचे  वो भी पहले की बनी इमारत जिसका एक तल्ला दो तल्ले के बराबर है। आज अकुइ बहुत ही खुश होकर खेल रही थी क्योंकि रोज छत पर आने से उसका डर निकलने लगा था। वैसे भी जितनी देर हम लोग छत पर रहते वो स्वयं को बहुत ही सुरक्षित महसूस करती। उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हम अपने पालतू चार पैरों वाले सदस्यों ( भोली - दृष्टा ) को ऊपर नहीं लाते। जब अक़ुई  - मकुुई एक घंटे खेल लेते तब उन्हें वहां से हटा कर छत पर बने स्टोर में रख देते और भोली - दृष्टा को बुला लेते। आज भोली ने  न जाने कैसे कमरे का  दरवाजा खोल लिया और दोनों मां - बेटी राजधानी की तरह छत पर दौड़ते हुए  आ  पहुंची और आते ही अकुईं की तरफ धावा बोल दिया । आकुइ जो अपनी मस्ती में खेल रही थी  पहले तो एक दम सहम गई फिर वो ठहरी शेरकी मौसी उसने अपने को गुस्से से फुला कर दुगुना कर लिया और खे खे कर दोनों को पीछे धकेल खुद सड़क की तरफ वाली दीवार पर चढ़ गई । परन्तु भोली - दृष्टा ने भी  कसम खा ली थी उसे डराने की अतः वे उसकी तरफ बढ़ने लगी। अकुई  भागने का रास्ता न पाकर हमारी बिल्डिंग से सटी दूसरी बिल्डिंग की तरफ जाने को जैसे ही उद्धत हुई कि उसे समझ आ गया कि वो दूसरी बिल्डिंग की तरफ जा ही नहीं सकती क्योंकि दोनों बिल्डिंगों के बीच में काफी अंतर  था।  अब उसकी स्थिति  एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई वाली थी तब तक हम पहुंच गए और भोली  - दृष्टा को डराकर हटाते हुए अकुई  को गोद में उठा लिया और उठाकर जहां पानी की टंकी  रखी थी वहां छोड़ दिया। लेकिन ये क्या अकुई तो गिर पड़ी और बहुत ही बुरी तरीके की आवाज निकालने लगी। उसका बदन भी  अकड़ने लगा। उसकी हालत देख हमे पल भर के लिए लगा कि इस नन्ही सी जान को  हार्ट अटैक पड़ा है साथ ही  एक पुरानी बिल्ली की याद आ गई जिसकी मरते समय ऐसी ही हालत  थी। हमने उसके साथ बात करना और उसे प्यार से सहलाना आरंभ कर दिया। इधर भोली - दृष्टा भी घबडा गए और उसी के पास आकर उसे सूंघने लगे। भोली - दृष्टा को देखकर हमे लगा कि इनकी उपस्थिति से अकुई की बची हुई सांसे भी निकल जाएगी अतः हमने उन्हें कस कर डांटा और वहां से भगा दिया।  चार - पांच मिनट के प्रयास के बाद वो थोड़ी सामान्य हुई। उसे गोद में उठा कर दुलराते हुए ये अहसास कराया की वो सुरक्षित है तब जाकर उसकी सांस में सांस आई। किन्तु उस पूरे  दिन के लिए वो  सामान्य रूप में खेल नहीं पाई । सहमी सी डरी सी मेरे इर्द - गिर्द ही घूमती रही।