मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

टिन्गु ने हमको क्यों काटा .



Chhuttu.
हमजैसे ही तीज की पूजा करवा कर अपनी किचन की तरफ आये ,देखा छुट्टु दीवार के ऊपर बैठा हुआ है , और टिन्गु गुस्से से लाल-पीला होकर उसे मारने जा रहा है।  ये देखकर हम समझ गए की छुट्टु ने जरूर  टिन्गु की पसंदीदा बिल्ली कोलू को लाईन मारी होगी।एक   बिल्ला  जल्दी दूसरे बिल्ले को उस जगह टिकने नही देता  जहाँ पर वो रहता  है ,मतलब प्रत्येक बिल्लों का अपना एक क्षेत्र होता है जिसमे वो अपनी दादागीरी कायम रखते है। उस क्षेत्र में रहने वाली समस्त मादा बिल्लियों  पर उनका एकाधिकार होता है ,ऐसे में अगर कोई बिल्ला आकर उनके वर्चस्व को चुनौती दे तो वो उन्हें सहन नही होता है।  लेकिन हां  बिल्लियों की एक और खासियत होती है की अगर उनके बीच बाहर से कोई दूसरी बिल्ली का बच्चा आ  जाये  चाहे वो नर हो या मादा वो उसे मारते नही।  अपितु उसे अपना खाना भी खाने देते है।  छुट्टु मुश्किल से एक महीने का होगा तभी कोई उसे हमारी बिल्डिंग में छोड़ गया।  सबको मालूम है की हमारे पास काफी मात्रा में बिल्लियाँ है तो सोचा होगा की उनके साथ ये भी पल जायेगा।  हुआ भी यही।  वो मरियल सा बच्चा छुप कर रहता था।  हम जब आफिस के लिए नीचे उतरते और अपनी बिल्लियों को चिकिन खिलाते तो वो छुप -छुप कर देखता।  हम उस पर तरस खा कर उसके लिए चिकिन उस जगह रख देते जंहा पर वो छिपा होता। धीरे -धीरे वो हमे देखकर सामने आने लगा।   जिस दिन हम ऑफिस देर से पहुँचते वो हमे खोजने ऑफिस में आजाता। बस फिर क्या था एक दिन वो जनाब हमारी गोद में चढ़ गए।  उस मरियल से गंदे बच्चे को देखकर ऑफिस में जितने लोग बैठे थे वे सभी  चिल्लाने लगे।  हटाइये इसे अभी आप को कोई बीमारी हो जाएगी , आप समझती नही ,बिल्लियों से कितने प्रकार के रोग होते है।  हमारे पतिदेव मनोज त्रिवेदी ने व्यंग्य करते  हुए कहा की इसे भी पाल लो।  पूरा चिड़ियाखाना तो घर को बना ही दिया है। हमने उनकी बात सुनी-अनसुनी कर उसे गोद में ले ऊपर आ गए जहा सारी बिल्लियाँ रहती है, उसे वहां छोड़ दिया  और उसका नामकरण छुट्टु कर दिया।   किंतु   वो डरपोक डर के कारण उनके संग ही नही रहता। उसे हम अपने कमरे में रखने लगे वही खाना देते ,सुलाते वो भी खुश होकर खेलता। अब मनोज जी भी उसके रहने से खुश रहने लगे।  धीरे-धीरे वो सभी बिल्लियों के साथ रहने लगा।  उनके साथ खेलता,खाता ,सोता। अब वो झबरे सुन्दर बालो वाला बिल्ला बन गया था.   अचानक हमने महसूस  किया  कि छुट्टु से टिन्गु कुछ नाराज रहने लगा।  जब कभी छुट्टु उसके सामने पड़ता वो उसे मारने दौड़ पड़ता।  पहले तो हम समझ नही पाये लेकिन जब छुट्टु को कोलू के साथ लाइन मारते देखा तो हम समझ गए की छुट्टु बड़ा  हो गया है।  वो बदमाश, ढिंकु को भी लाइन मारता जो बहुत ही रिज़र्व  स्वाभाव वाली बिल्ली है   और किसी बिल्ले को  अपने पास आने नही देती।   ये उसके साथ भी छेड़खानी करने की कोशिश करता। ये बात अलग है की वो छुट्टु को मारने दौड़ती  और उसके सामने से हट जाती। ढिंकु ,चित्तू दोनों बिल्लियाँ बहुत ही सीधी बिल्लियाँ है इसलिए हम  दोनों बिल्लियों   को  अपने साथ कमरे में रखते थे.  छुट्टु की  हरकते  रात में हमारी नींदमें   विघ्न डालने लगी  ,परिणाम हमने उसे कमरे से बाहर कर दिया और टिन्गु ने  उसे बिल्डिंग के बाहर। अब उसने हमारी सामने वाली बिल्डिंग में अपना घर बना लिया था।  खाना ( चिकिन और अंडा ) हम रात में सामने वाली बिल्डिंग की छत पर फेंक देते। रात में कौवे और चील उसका खाना खाने के  लिए नही रहते ,जिसके कारण वो खाना शांति से खा लेता।      और दिन में किसी कोने को पकड़ कर सो  जाता  . लेकिन उसे  हम लोगो की कमी बहुत खलती थी अतः  वो हमारे पास आने के लिए रोता।  उसकी बचपन से आदत है कि  जब उसे  नींद आती वो मेरी गोद में आ  जाता ,मेरे हाथों को चेहरे को चाटने की कोशिश करता जैसे वो हमारे द्वारा की जाने वाली अपनी परवरिश के लिए हमे धन्यवाद दे रहा हो और फिर चिपक  कर सो जाता  किन्तु  उस दौरान अगर हमने   पैर सीधा करने  की कोशिश की तो बो बहुत बुरा मान जाता।  उसकी बाल -सुलभ हरकत देखकर हमे उस  प र बहुत प्यार आता।  इसी वजह से   जब कभी वो हमारे पास   आता हम उसे  गोद में उठा कर प्यार करने  से अपने को रोक नही पाते। तब उसे किसी भी बिल्ली से पिटता हुआ कैसे देख पाते। उस  रात  हमारा प्यार ही हमारी परेशानी का कारण बन गया. 
Tingu & Chhuttu in a fighting mood.
 ये 28 अगस्त की रात की बात है।  हमने छुट्टु को गोद में उठा लिया और उसे टिन्गु के कहर से बचाने के लिए अपने कमरे की तरफ ले  आये।  टिन्गु अत्यधिक क्रोध के कारण मेरे पीछे  आने लगा।  हमने बिना टिन्गु की  परवाह किये छुट्टु को  कमरे के  अंदर करने के लिए दरवाजा खोला तो टिन्गु महाराज दरवाजे के बीचोबीच खड़े हो गए।  हमने देखा की टिन्गु डांटने के बावजूद भी दरवाजे से नही हट रहा है उधर छुट्टु डर के कारण गुर्रा रहा है। टिन्गु को हटाने के लिए हमने उसे अपने बाएं पैर से दरवाजे   से  अलग किया जैसा की हम हमेशा करते है।  हमारे पास दस बिल्लियाँ थी जिनमे से अब सात रह गयी है।  जब कभी वे  आपस में लड़ती हम उन्हें एक दूसरे के झगडे से बचाने के लिए एक को कमरे के अंदर और एक को डांटकर कमरे के बाहर कर देते।  लेकिन उस दिन तो मेरे पैर की  ग्रहदशा ही ख़राब   चल रही  थी।   हमने जैसे ही टिन्गु को पैर से हटाया उसने मेरे पंजे को  अपने जबड़े में ले लिया।  हमने पहले अपने हाथ में पकड़े छुट्टु को कमरे के अंदर फेंक कर दरवाजा बंद किया ततपश्चात टिन्गु को हटाया। इतनी देर में उसने मेरे पैर के पंजे को दोनों तरफ से पंचर कर दिया।     पंजे से खून बह रहा था।  हम भी उस खून को रोकने की कोशिश नही कर रहे थे क्योंकि हम चाहते थे की जो संक्रमण उसके दांतों के जरिये मेरे शरीर के अंदर प्रवेश  कर रहे   है वो खून के साथ बाहर निकल जाये। तब तक   शोर सुनकर मेरे बेटे ,बेटी ,घर के  नौकर आकर खड़े हो गए।  पूरा बाथरूम खून से लाल हो चुका था।  ये देखकर बेटे -बेटी आपे -बेआपे होने लगे।   उनके गुस्से की वजह स्पष्ट थी ,किन्तु हम जानते थे की  अगर इन लोगो को नही रोका तो ये लोग टिन्गु   को बहुत जोर से मारेंगे।  हमारे पैर में भयंकर दर्द था फिर भी अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए हमने कहा की तुम इसे क्यों मारोगे ,गलती मेरी थी , हमने उसे अपने पैर से  उस समय हटाया जिस समय  वो भयंकर क्रोध में था।  इस पर उन लोगो ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की हम इसे  बिल्डिंग से दूर  फिंकवा देंगे।  उनकी बात को काटते हुए हमने   जवाब दिया की ' बहुत बार तुम लोग भी हमारी बात नही सुनते ,आपस में झगड़ा करते हो तो क्या हम तुम्हे भी कही दूर फिकवा देते ।  जैसे तैसे उन लोगो  शांत करा कर अपने पैर के  जख्म को पहले साबुन से साफ़ किया  फिर गरम पानी में सेवलान डालकर सिकाई की। रात  का एक बज रहा था  डाक्टर के पास हम जाना नही चाहते थे क्योंकि अगर हम डाक्टर के पास  चले जाते तो परिवार के समस्त गुस्साए लोग हमारी बिल्लिंयों को बोरो  में भरवा  कर  फिकवा  देते  ,जिसे की  हम सहन नही कर पाते। पर पैर का भयंकर दर्द थमने का नाम नही ले रहा था।  मेरी बेटी ने ये देखकर फिर से पानी गरम करके सिकाई करने के लिए दिया और हल्दी का गरम -गरम लेप बना कर घाव पर लगा कर पट्टी कर दी।  उससे काफी आराम मिला यद्यपि इतना तो हम समझ ही गए थे की टिन्गु  ने हमे लम्बे समय के लिए बिस्तर पर लिटा दिया है पर उपाय न होने  के कारण हम मजबूर थे। दूसरे दिन पूरा शरीर तेज बुखार से तप रहा था  . डाक्टर के पास जाने पर उसने सलाह दी की आप पांच-  छह दिन तक पूर्ण रूप से बेड रेस्ट करेगी। परन्तु दूसरे दिन ही  चित्रांकन प्रत्रियोगिता तत्पश्चात बाकि के महत्वपूर्ण    कार्यक्रम लाईन से लगे हुए थे जिन्हे हम स्थगित नही कर  सकते थे   इसका परिणाम   पैर में संक्रमण प्रवेश कर गए,  जिनका अंत आपरेशन  के रूप में हुआ। 
Seven days in hospital.
 इधर टिन्गु    जो माँ -माँ करते हुए पीछे -पीछे घूमता था , काटने के बाद डर  के कारण  उसके मुंह से आवाज ही गायब हो गयी।   कमरे में चुपचाप प्रवेश करता और  छुप कर सो जाता। एक दिन हमने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उससे कहा  की तुमने हमको काटा देखो  कितनी   कस के  चुट्टू लगा है। ये देखकर वो मेरी गोद   में आकर बैठ गया और ऐसे चाटने लगा जैसे कह  रहा हो की हमसे गलती हो गयी। 
                    परिवार के समस्त लोग उसके खिलाफ है , उनके अनुसार बिल्लियाँ वफादार नही होती। वे स्वार्थी होती है, वे किसी का भला नही कर सकती आदि।   अनगिनत सवाल है जो उनके स्वछंद स्वाभाव के ऊपर प्रश्न चिह्न लगाती है.  लेकिन हमने महसूस किया की इनके अंदर भी संवेदनशीलता है ,ये भी गलती करने पर उसे महसूस करते है।  क्योंकि जब हम अस्पताल से आये ,तो सबसे पहले मेरा स्वागत कोलू ने सीढ़ियों पर किया ,उसके बाद चित्तू कमरे में मिली जो हमे देखते ही गोद   में घुस गयी। तभी हमारी बेटी ने बताया की जबसे हम अस्पताल गए है ढिंकु दिखाई नही दी। ठीक एक घंटे के बाद ढिंकु आई और मेरे गले से लिपट कर ऐसे रोई जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से बहुत दिनों बाद मिलने पर रोता है।  टिन्गु  महाराज की तो पूछिये ही मत वो हमे देखकर कमरे में आ गया। मेरी बेटी और मनोज जी ने उसे बहुत भागा ने की कोशिश की लेकिन वो भागा नही। बेचारा पिटने के  बाद भी मेरे पास आकर चिपक कर बैठ गया। जब हमने उसे खूब प्यार  किया  उससे बात की तब वो कमरे के बाहर गया।  ऐसी मासूम बिल्लियों को हम कैसे अपने से अलग करने की  हिम्मत कर  सकते है। उन्हें दूर फिकवा कर उनके विश्वास के साथ कैसे घात कर सकते है। ये मेरे लिए तब तक संभव नही हो सकता जब तक की पानी सर के ऊपर न निकल जाये।

Kolu . Tingu's favorite cat.


Chhuttu in an angry mood.